Tag: सागर पर कविता

  • सागर पर हिंदी कविता – सुकमोती चौहान रुचि

    सागर पर हिंदी कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सागर गहरा ज्ञान सा, बड़ा वृहद आकार |
    कौन भला नापे इसे, डूबा ले संसार |
    डूबा ले संसार, नहीं सीमा है कोई |
    कहलाये रत्नेश, यही कंचन की लोई |
    कहती रुचि यह बात , यही मस्ती का आगर |
    अनुपम दे आनंद,देख लो गहरा सागर ||

    सागर तट पर बैठकर ,लहरें गिनकर आज |
    भाव प्रफुल्लित कर रही, लहरों की आवाज ||
    लहरों की आवाज, सुखद पल और कहाँ है |
    खुले गगन के बीच , पनपता प्रीत यहाँ है ||
    करती रुचि फरियाद, बसायें अपना आगर |
    बने घरौंदा एक, रहे साक्षी ये सागर ||

    सागर साहिल पर सजे , सीपी शंख दुकान |
    सूरज की शुचि लालिमा, लगती रजत समान ||
    लगती रजत समान, झिलमिलाती है लहरें |
    मछुआरों की नाव , किनारे आकर ठहरे ||
    कहती रुचि करजोड़, ज्ञान का भरना गागर |
    कतरा कतरा जोड़ , बना अद्भुत यह सागर ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    आगर – घर

  • सागर- मनहरण घनाक्षरी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सागर- मनहरण घनाक्षरी

    पोखर व झील देखो , जिसमें न गहराई ,
    थोड़ा सा ही जल पाय, मारते उफान हैं I

    सागर को देखो वहाँ , नदियाँ हैं कई जहाँ ,
    सबको  समेट   हिय , करे  न  गुमान  है I

    जिसका न ओर छोर , दिल में अथाँह ठोर ,
    सबको  ही  एक  रस , देता  सम्मान  है  I

    तेरे  सम और नहीं , जगत  में  दिखे कहीं ,
    “माधव”विशाल हिय ,ग्यानियों की शान है I

    जल धारा भिन्न-भिन्न,राह भी हैं भिन्न-भिन्न ,
    सबका  स्वभाव  भिन्न , सागर  में  देखिये I

    जगत में भिन्न जीव, कर्म पथ भिन्न – भिन्न ,
    जाति धर्म मान भिन्न , मिलें  प्रभु  देखिये I

    देता है चुनौती गर , प्रकृति  को  छेड़  नर ,
    ज्वार से  विनाशकारी , कोप जरा  देखिये I

    धन पद  पाय  सभी ,”माधव” न मद  कभी,
    सम्पदा  अपार  हिय , जलनिधि   देखिये I


    सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”