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तरबूज पर बाल कविता : तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल और पानी से भरपूर व मीठे होते हैं। इनकी फ़सल आमतौर पर गर्मी में तैयार होती है। पारमरिक रूप से इन्हें गर्मी में खाना अच्छा माना जाता है क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं। 

तरबूज पर बाल कविता

तरबूज पर बाल कविता

देख सकल तरबूज का,मन भावन है रूप।
प्यासे कंठों को करे,सरस तरल नित धूप।।

हर प्यासे की मांग है,खाने को तरबूज।
बदहजमी को रोक दे,आए पेट न सूज।।

नयन देखते खुश हुए, गए विरह सब भूल।
खाते ही तरबूज फल,भागे फौरन शूल।।

दुख में साथी बन यही,करे हरण जन पीर।
खुशी खुशी मानव कहे, जग में सबसे बीर।।

सूखे कांठों को करे,थंडकता अहसास।
अदभुत गर्मी में मजा,लगे विपुल मधुमास।।

लाल रंग को देखते,मन में उठे हिलोर।
काली काली बीज है,नाचे है मनमोर।।

सागर जैसे ही भरा,पावन पानी कोष।
खाते गर्मी है भगे, तन मन लाए होश।।

परमेश्वर प्रसाद अंचल

बाल गीत-तरबूज

एक हरा भरा बाग
सुन कोकिला का राग
बच्चे धीमी चाल से
कोई जाये न जाग।

नानी लाठी टेकती
मुनिया ताली ठोकती
भान तरबूज का हो,
खुद को कैसे रोकती।

अहा !हुए मालामाल
देख गूदा लाल -लाल
बीज काले धँसे हुए
लगे जड़ा टीका गाल।

मीठे रस भरा थाल
भाए अब कहाँ दाल
छीना झपटी में अब
देखो भीगे बाल भाल।।

मिट गई सबकी प्यास
बढ़ी तरबूजी आस
रखे सेहत भरपूर
आये यह हमें रास।।

अर्चना पाठक निरंतर
अम्बिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़

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