उपवन की कचनार कली है
उपवन की कचनार कली है ।
घर भर में रसधार ढ़ली है ।।
यह दुहिता जग भार नहीं है ।
अवसर दो हकदार नहीं है ।।
समय सुधा रस सिंचित बेटी ।
पथ गढ़ती अब किंचित बेटी ।।
नव युग प्रेरक है अब देखो ।
सृजन महत्व मिला सब देखो ।।
अब खुद जाग रही सपने में ।
हक हित भाग रही गढ़नें में ।।
घर भर बंधन बाँध गई वो ।
मन ममता भर लाँघ गई वो ।।
कुछ दिन पाहुन होकर जीती ।
सजन दुलार सखी बन पीती ।।
पिय हिय में वह नैहर भाती ।
बचपन बाबुल भूल न पाती ।।
नव कुल गोत्र गढ़े यह बेटी ।
सुख भवि नेह सदा सब देती ।।
अगर हँसे घर में शुचिता हो ।
बस ममता ललिता कविता हो ।।
~~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह (छ. ग.)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
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