वक़्त पर हमने अगर ख़ुद को संभाला होता
ज़ीस्त में मेरी उजाला ही उजाला होता

दरकते रिश्तों में थोड़ी सी तो नमी होती
अपनी जुबान को जो हमने सम्हाला होता

तुमको भी ख़ौफेे – खुदा यार कहीं तो होता
काश ! रिश्तों को मोहब्बत से संभाला होता

दर- ब -दर ढूंढ़ रहा जिसको बशर पत्थर में
काश ! दिल में भी कहीं एक शिवाला होता

प्यार करने की सजा फिर न मिली होती गर
हमने सिक्का कोई क़िस्मत का उछाला होता

काश ! मालूम ये होता कि नहीं उल्फ़त है
कच्ची मिट्टी को संस्कारों में जो ढाला होता

लोग हँसते खुद पर जो निराले वो, अजय
काश ! इतना ही हसीं दिल भी हमारा होता

अजय ‘मुस्कान’

Comments

  1. Anand numar Mishra Avatar
    Anand numar Mishra

    बहुत खूबसूरत, उम्दा

  2. ANKUR Avatar
    ANKUR

    Waah waah..

  3. भगवती मिश्रा Avatar
    भगवती मिश्रा

    वाह वाह, बेहतरीन

  4. प्रीति Avatar
    प्रीति

    बेहतरीन, क्या लिखते है, वाह वाह..

    1. अजय कुमार "मुस्कान " Avatar
      अजय कुमार “मुस्कान “

      thanks

  5. Mikku Avatar
    Mikku

    बेहतरीन, क्या लिखते है, वाह

    1. अजय कुमार "मुस्कान " Avatar
      अजय कुमार “मुस्कान “

      thanks

  6. Anushka Thakur Avatar
    Anushka Thakur

    Nice

    1. अजय कुमार "मुस्कान " Avatar
      अजय कुमार “मुस्कान “

      thanks

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