वतन के रखवाले
सरहद की दुर्गम घाटी चोटी पर,
नित प्रहरी बन तैनात हैं
निशि-वासर हिमवर्षा,पावस में
कर्तव्यनिष्ठ भारत माँ के लाल हैं।
घर छोड़ सरहद पर बैठे हैं रणबांकुरे
देशवासी चैन की नींद सो पाते हैं
अमन शांति सर्वत्र है हमसे
निर्भय, निडर परिवेश बनाते हैं।
मात- पिता परिवार प्रियजन
सबसे बढ़कर है देश की रक्षा
बारूद के ढेर पर तोपों से हम
दुश्मन से करते हैं सुरक्षा।
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जब जब रिपु ने वार किया
देश की थाती पर प्रहार किया
बसंती चोला पहन निकले हम
अरि का भीषण संहार किया।
आँच न आने देंगे माँ तुझ पर
प्राणों की बाजी लगा देंगे
आँख उठाई दुश्मन ने तो
अस्तित्व जड़ से मिटा देंगे।
जान हथेली पर लेकर हम
दुश्मन की ईंट बजाते हैं
छठी का दूध दिलाकर याद
भारत माँ का ध्वज़ फहराते हैं।
वतन के हम रखवाले हैं
फौलादी सीना ताने मतवाले हैं
आज़ादी की रक्षा में तत्पर
शहादत देने वाले हैं।
आतंकी जेहादी का हम
सीमा पर ढेर लगाते हैं
फर्ज़ निभाने की खातिर
सर पर कफ़न बांध कर चलते हैं।।
सौभाग्य है हम रखवालों का
हिफाज़त-ऐ-वतन जीवन बिताते हैं
मौका-ए-शहादत मिल जाए तो
तिरंगे में लिपट कर आते हैं।
कुसुम लता पुंडोरा
आर.के.पुरम,
नई दिल्ली
मोबाइल-९९६८००२६२९