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वे है मेरे गुरु जी

अंधकार की गुफा बड़ी थी,
जिससे मुझको बाहर ले आए ।  
   काले काले श्यामपट्ट पर, 
नूतन श्वेत अक्षर सिखाये। 
अपना पराया अच्छे बुरों का,
सदैव ये मुझे भेद बताए।
सबसे अच्छे सबसे सच्चे,
वे है मेरे गुरु जी…….

बात बड़ी बड़ी,
छोटी करके ।
ख्वाब दिखाएं ,
बड़े होने के ।
साथ मेरे खेले कूदे ,
मुर्दों में भी जान फूंके ।
जिनका अक्षर अक्षर ब्रह्म था,
वे है मेरे गुरुजी ………

मेरे दुख में  वे रोते थे,
सफलताओं की कुंजी बोते थे।
आगे बढ़ाने  मेरी सीढ़ी बनकर,
नित नवीन ज्ञान देते थे ।
जिनकी बदौलत आज पटल पर,
काव्य नवीन रच रहा हूं ।
अखिल विश्व में जीवित ईश्वर,
वें है मेरे गुरुजी ………

रोहित शर्मा ‘राही’
भंवरपुर, जिला-महासमुंद
छत्तीसगढ़
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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