कविता प्रकाशित कराएँ

विश्वास के पुल

उफनती नदी में उमड़ता सैलाब,
पुलिया के नीचे पानी गहरा है।
बीच मझधार में फँसा है जीवन,
विश्वास के पुलिया पर ठहरा है।।

जीवन मृत्यु दो छोर जीवन के,
जहाँ पर पाँच तत्वों का पहरा है।
सजग हवा सोते हैं साँसों पर,
तब तब ही यह जीवन कहरा है।।

धूप और छाँव में बीतता है जीवन,
कहीं कहीं पर ही बहुत कोहरा है।
आसमानी ओस टपकती जमीं पर,
ठंड लगने पर तो कम्बल दोहरा है।।

दिल की धड़कन है उफनती नदी,
प्रेम – मोहब्बत की एक दहरा है।
देख कर उतरना पैर न फिसले,
गोता लगाएँ वो पल सुनहरा है।।

सुन लो आवाज साँसों के तार से,
दिल की नहीं सुनता कान बहरा है।
दोनों नयन ही विश्वास के है पुल,
इसीलिए दिमाग ऊपर में फहरा है।।

स्वरचित मौलिक रचना,,,,
✍️ सन्त राम सलाम
जिला -बालोद, छत्तीसगढ़।


Posted

in

by

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *