योग मन का मीत है
करना नित अभ्यास
फैला योग का प्रकाश
योग है मरहम भी
योग तो है साधना
प्रात: काल उठा करो
योग खूब सारा करो
बाद स्नान ध्यान करो
योग है आराधना
कम खाओ गम खाओ
सेहत खूब बनाओ
मन के मालिक बनो
रोगों को न थामना
स्वर्ण जैसा रहे तन
सदा शुद्ध रहे मन
देह धन हो संचित
ऐसी रहे कामना
प्रकृति का हो वरण
दोषों का हो निवारण
जीवन में शांति रहे
राज भोग कीजिये
तन सदा स्वस्थ रहे
मन सदा स्वच्छ रहे
व्यर्थ न हो धन व्यय
ऐसा योग कीजिये
दूर करता तनाव
शांत रहता स्वभाव
दिनभर स्फूर्ति मिले
सब लोग कीजिये
ध्यान चित्त का गीत है
योग मन का मीत है
लगा लो ध्यान आसन
दूर रोग कीजिये
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धनेश्वरी देवांगन “धरा “
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