शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “पंडवानी” छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय लोककला पंडवानी पर केंद्रित है। पंडवानी महाभारत की कथा को गायन और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करने की एक अनूठी विधा है। कवि ने इस कविता के माध्यम से पंडवानी की सुंदरता, उसके पीछे की कहानियां और इसकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर किया है।
पंडवानी पर कविता
काव्य विधा : –रोला
धरे तमूरा हाथ, सुनाते हैं मृदु बानी ।
तीजन बाई तान, कहे हैं कथा कहानी ।।
वेद व्यास महराज, महाभारत जो लिखते ।
लिए वही आधार, पंडवानी में दिखते ।।
करते पांडव गान, गायिका सुर को साजे ।
हारमोनियम साथ, ढोल तबला भी बाजे ।।
पग में घुँघरू वार, कथा कह ठुमके नाचे ।
भाव भंगिमा साज, कथा का वाचन बाचे ।
तीजन झाडूराम, शांति बाई है चेलक ।
ऊषा बाई साथ, रहे रागी सुर मेलक।।
दो शाखा है मान, वेदमति पहला मानो ।
कापाली है साथ, दूसरा शाखा जानो ।।
एक खड़े रह गान, वेदमति इसको कहते।
बैठ करे सुर गान, इसे कापाली गहते ।।
यही विधा पहचान, पंडवानी की जानो।
मिला विश्व पहचान, रीतु तीजन सह मानो ।।
व्याख्या:
यह कविता पंडवानी को एक कला के रूप में चित्रित करती है जो लोगों को एक साथ लाता है और उनकी संस्कृति को जीवंत रखता है। कवि ने पंडवानी को “महाभारत” की कथा को गायन और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक माध्यम बताया है। कवि ने तीजन बाई, शांति बाई और ऊषा बाई जैसी प्रसिद्ध पंडवानी कलाकारों का उल्लेख करते हुए पंडवानी की परंपरा को आगे बढ़ाने में उनके योगदान को रेखांकित किया है।
कवि ने पंडवानी की दो शाखाओं, वेदमति और कापाली का भी उल्लेख किया है। वेदमति शैली में पंडवानी कलाकार खड़े होकर गाती हैं, जबकि कापाली शैली में वे बैठकर गाती हैं। कवि ने पंडवानी को “विश्व पहचान” प्राप्त करने वाली कला बताया है और तीजन बाई को इस कला को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बनाने का श्रेय दिया है।
कविता का सार:
यह कविता पंडवानी की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस कला को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें पंडवानी के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।
निष्कर्ष:
शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “पंडवानी” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें पंडवानी के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।
अतिरिक्त जानकारी:
- पंडवानी को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का दर्पण कहा जाता है।
- पंडवानी में गायिकाएं तार और ताल के साथ महाभारत की कथा को गाती हैं।
- पंडवानी को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है।
यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।
यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।