वर्षा ऋतु (मनहरण घनाक्षरी) -सुश्री गीता उपाध्याय

वर्षा ऋतु-मनहरण घनाक्षरी


सजल सघन बन,
उमड़ घुमड़ घन,
बिखर गगन भर-
देखो सखी आ गया।

घरर घरर घर,
गरज गरज कर,
तमक चमक हर-
दिशा चमका गया।

झरर झरर झर,
धरर धरर धर,
तरर बतर कर,
जल बरसा गया।

सरर सरर सर,
फरर फरर फर,
इधर उधर कर,
सबको भिगा गया।

दादुर टरर टर,
हर्ष पूर्ण स्वर भर
इत उत कूद कर,
खुशी दरसा गया।

सूखी माटी भीग चली,
बह गयी गली गली,
नार नदी सब बहे,
सर सरसा गया।

हल बैल बीज लिए,
खेत में कृषक गए,
नव गीत छेड़ रहे,
उमंग समा गया।

धरती सरस पगी ,
ममता छलक लगी,
बीज नव जीवन पा,
उठ कर आ गया।

—सुश्री गीता उपाध्याय
रायगढ़ छत्तीसगढ़

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