तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो- कविता

इस कविता के माध्यम से कवि उस खुदा/परमात्मा की इबादत में खुद को भूल जाना चाहता है ।
तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो- कविता - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो

वर्षा बारिश

तेरे चरणों में पुष्प बनकर मैं बिखर जाऊं तो अच्छा हो

तेरे चरणों में दीप बनकर मैं प्रज्जवलित हो जाऊं तो अच्छा हो

तेरे चरणों का नूर बनकर मैं खिल जाऊं तो अच्छा हो

पीर दिल की भुलाकर मैं तुझ पर समर्पित हो जाऊं तो अच्छा हो

तेरी इबादत के गीत बनकर मैं सँवर जाऊं तो अच्छा हो

तेरा शागिर्द बनकर मैं रोशन हो जाऊं तो अच्छा हो

तेरे मंदिर के बुर्ज़ पर ध्वज बन लहर जाऊं तो अच्छा हो

तेरे दीदार की आरज़ू जो पूरी हो जाए तो अच्छा हो

तेरे करम का सिला नसीब हो जाए तो अच्छा हो

तेरे करम से भाग्य मेरा भी रोशन हो जाए तो अच्छा हो

तेरे बन्दों की खिदमत में मेरी जिन्दगी गुजर जाए तो अच्छा हो

तेरे नाम के साथ खामोश हो जाए जुबाँ मेरी तो अच्छा हो

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