फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

इस ग़ज़ल में किसी से मिलने की आरज़ू को बयाँ किया गया है |
फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं - ग़ज़ल - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं

kavita

फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं

कोई तो ऎसी सुबह हो खुदाया मेरे

जख्म दिल के नासूर न हो जाएँ कहीं

उसके दीदार की कोई तो सुबह हो खुदाया मेरे

रातों की नींद , दिल का चैन अब नहीं मेरे

उसका पहलू नसीब हो मुझको खुदाया मेरे

उसकी कमसिन अदाओं का हुआ मुझ पर जादू

उसकी बाहों का मुझे सहारा मिले खुदाया मेरे

उसकी आँखों में डूबने का मन करता है मेरा

कुछ तो मेरी खबर कर खुदाया मेरे

कहीं किसी मोड़ पर जो वो मिल जाए मुझे

कुछ ऐसा तो करम कर खुदाया मेरे

मैं उसके दीदार की आस लिये ज़िंदा हूँ

क़यामत हो उसका दीदार हो जाए खुदाया मेरे

फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं

कोई तो ऎसी सुबह हो खुदाया मेरे

– अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

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