बाल हृदय
रचनाकार –
राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
बच्चों तुम्हारा दिन आया,
जो बाल दिवस कहलाया।
खेल खिलौने गिफ्ट देकर,
बाल हृदय को बहलाया।।
निश्छल निर्मल दिल तुम्हारा,
दुनियादारी नहीं समझता है।
लोभ, मोह, मद, माया में,
बाल मन नहीं उलझता है।।
बाल उम्र के बाद बच्चों,
झंझटों भरा जीवन होता।
कोई तो संस्कार अपना,
और कोई ईमान ही खोता।।
वृद्धाश्रम आबाद हुए,
उन बच्चों की नादानी से।
बाल हृदय को मार दिया,
कुछ अपनी मनमानी से।।
बुढ़ापा बहुदा बचपन का,
पुनर्रागमन होता है।
बालहृदय की हत्या करता,
वही पीछे पछताता है।।