नन्हीं चिड़िया पर कविता
माँ
तेरे आंगन की
मैं एक
नन्हीं चिड़िया
खेलती-चहचहाती
आंगन में
सुबह उठते ही
कानों में
रस भरती
फुदकती फिरती
मुझे देख
भूल जाती तूं
सारे गम जहान के
काम दिन-रात
मैं करती
तेरी सेवा मैं करती
बदले में कुछ न चाहती
बड़ी हुई तो
उड़ गई
इस आंगन से
माँ भूल न जाना
इस नन्हीं चिड़िया को ।
-मीना रानी, टोहाना
हरियाणा