● सरयू प्रसादर
बेगुनाहों पर बमों की बेखबर बौछार की,
दे रहे हैं धमकियाँ बंदूक की तलवार की ।
बागे-जलियाँ में निहत्थों पर चलाई गोलियाँ,
पेट के बल भी रेंगाया, जुल्म की हद पार की ॥
हम गरीबों पर किए जिसने सितम बेइंतिहा,
याद भूलेगी नहीं उस डायरे-बदकार की ।
या तो हम भी मर मिटेंगे या तो ले लेंगे स्वरात,
होती है इस बार हुज्जत खतम अब हर बार की ॥
शोर आलम में मचा है लाजपत के नाम का,
ख्वार करना इनको चाहा, अपनी मिट्टी ख्वार की ।
जिस जगह पर बंद होगा तन शेरे-पंजाब का,
आबरू बढ़ जाएगी उस जेल की दीवार की ॥
जेल में भेजा हमारे लीडरों को बेकसूर,
लॉर्ड हार्डिंग तुमने अच्छी न्याय की भरमार की ।
खूने मजलूमों की ‘सूरत’ अब तो गहरी धार है,
कुछ दिनों में डूबती है आबरू अगियार की।