धरती हमको रही पुकार

धरती हम को रही पुकार ।

समझाती हमको हर बार ।।

काहे जंगल काट रहे हो ।
मानवता को बाँट रहे हो ।
इससे ही हम सबका जीवन,
करें सदा हम इससे प्यार ।।

धरती हमको रही पुकार ।।

बढ़ा प्रदूषण नगर नगर में ।
जाम लगा है डगर डगर में ।।
दुर्लभ हुआ आज चलना है ,
लगा गन्दगी का अम्बार ।।

धरती हमको रही पुकार ।।

शुद्ध वायु कहीं न मिलती है ।
एक कली भी न खिलती है ।।
बेच रहे इसको सौदागर ,
करते धरती का व्यापार ।।

धरती हमको रही पुकार ।।

पशुओं को बेघर कर डाला ।
काट पेड़ को हँसता लाला ।।
मौसम नित्य बदलता जाता ,
नित दिन गर्मी अपरम्पार ।।

धरती  हमको रही पुकार ।।

आओ मिलकर पेड़ लगायें ।
निज धरती को स्वर्ग बनायें ।।
हरा – भरा अपना जीवन हो ,
बन जाये सुरभित संसार ।।

धरती हमको रही पुकार ।।

परयावरण बचायें हम सब ।
स्वच्छ रखें घर आँगन सब ।।
करे सुगंधित तन मन सबका ,
पंकज कहता बारम्बार ।।

धरती हमको रही पुकार ।।

डाँ. आदेश कुमार पंकज
विभागाध्यक्ष गणित शास्त्र
रेणुसागर सोनभद्र
उत्तर प्रदेश
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *