छेरछेरा त्योहार पर कविता

छेरछेरा त्योहार

पूस मास की पूर्णिमा, अन्न भरे घर द्वार।
जश्न मनाता आ गया, छेरछेरा त्योहार।।
अन्न दान का पर्व है, संस्कृति की पहचान।
मालिक या मजदूर हो, इस दिन एक समान।।


घर-घर जातें हैं सभी, गाते मंगल गान।
मुट्ठी भर-भर लोग भी, करते हैं सब दान।।
भेष बदल कैलाश-पति, गये उमा के द्वार।
अन्नदान से फिर मिला, इक दूजे को प्यार।।


कर्म सभी अपना करें, रखें सभी से प्रीत।
हमें यही बतला रही, लोक पर्व की रीत।।
प्रेम-प्यार से सब रहें, करें मलिनता दूर।
मात अन्नपूर्णा करें, धन वैभव भरपूर।।
       
         केतन साहू “खेतिहर”
   बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)

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