प्रीत की बाजी पर कविता

प्रीत की बाजी पर कविता

कल्पना यह कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
गया भूल भी मधुशाला,
वह गुलाबी मद सरूरी।

सो रही है भोर अब यह,
जागरण हर यामिनी को।
प्रीत की ठग रीत बदली,
ठग रही है स्वामिनी को।
दोष देना दोष है अब,
प्रीत की बाजी कसूरी।
कल्पना यह कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।

प्रीत भूले रीत को जब,
मन भटक जाता हमारा।
भूल जाता गात कँपता,
याद कर निश्चय तुम्हारा।
सत्य को पहचानता मन,
जगत की बाते फितूरी।
कल्पना यह कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।

उड़ रहा खग नाव सा मन,
लौट कर आए वहीं पर।
सोच लूँ मन मे भले सब,
बात बस मन में रही हर।
प्रेम घट अवरोध जाते,
हो तनों मन में हजूरी।
कल्पना यह कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।

प्रेम सपन,तन पाश लगे,
यह मन मे रही पिपासा।
शेष जगत में बची नहीं,
अपने मन में जिज्ञासा।
आओ तो जी भर देखूँ,
कर दो मन्शा यह पूरी।
कल्पना यह कल्पना है,
आपके बिन सब अधूरी।
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✍©
बाबू लाल शर्मा बौहरा
सिकंदरा दौसा राजस्थान
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