बसंत तुम आए क्यों ?
मन में प्रेम जगाये क्यों?
बसंत तुम आए क्यों ?
सुगंधो से भरी
सभी आम्र मंजरी
कोयल कूकती फिरे
इत्ती है बावरी
सबके ह्रदय में हूक उठाने
मन में प्रेम जगाये क्यों?
बसंत तुम आए क्यों ?
हरी पत्तियाँ बनी तरुणी
आलिंगन करती लताओं का
अनुरागी बन भंवर
कलियों से जा मिला
सकुचाती हैं हवाएँ
दिलों को एहसास दिलाने
मन में प्रेम जगाये क्यों?
बसंत तुम आए क्यों ?
सरसों के फूल खिले
बासन्ती हो गई उपवन
सूर्य को दे नेह निमंत्रण
आलिंगन प्रेम पाश का
मन में प्रेम सुधा बरसाने
मन में प्रेम जगाये क्यों?
बसंत तुम आए क्यों ?
अनिता मंदिलवार “सपना”
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़
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