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दारू विषय पर कविता

दारू विषय पर कविता

कविता संग्रह
कविता संग्रह

दारू पिये ल झन जाबे समारू
दारू पिये ल झन जाबे,,,,
गली-गली जूता खाबे समारू
दारू पिये ल झन जाबे ,,,,!

नाली म परे,माछी ह झूमे
मुँहू तैं फारे,कुकुर ह चूमे
अब सुसु बर होगे *उतारू* समारू
दारू पिये ल झन जाबे……!

पिये ल बइठे,सङ्गी ह लूटे
झगरा मताये,धर-धर कूटे
बस मंदू ह देवय *हुँकारू* समारू
दारू पिये ल झन जाबे……!

दारू पियइ म चेत हरागे
करू-करू म पेट भरा-गे
तोर जिनगी होगे *घुनारू* समारू
दारू पिये ल झन जाबे ……!

करजा-बोड़ी,बिल-बिलागे
मुक्का बनगेस,मुँह सिलागे
ये इज्ज़त होगे *बजारू* समारू
दारू पिये ल झन जाबे…….!

— *राजकुमार ‘मसखरे’*

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