गृहलक्ष्मी पर कविता/ डॉ नीतू दाधीच व्यास

तुम आओगी क्या?

मैं तुम्हें अपनी गृहलक्ष्मी बनाऊंगा,
तुम आओगी क्या?
बस तुम संग एक छोटा सा संसार बसाऊंगा,
तुम आओगी क्या?

नहीं लाऊंगा तोड़कर कोई चाँद – तारें,
न ही जुगनू से रोशनी कराऊंगा।
मैं तो तुम्हारे हाथों से ही, घर के मंदिर में दीप जलवाऊँगा।
तुम आओगी क्या?

नहीं करूंगा जन्म जन्म के साथ के वादे,
ना ही कयामत में मिलने की कसम खाऊंगा।
पर इस जन्म में साया बन हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगा।
तुम आओगी क्या?

नहीं है मेरे तुम संग जन्नत की सैर के इरादे,
ना ही कोई बादलों पर बिठा घुमाऊंगा।
मैं तो किसी पेड़ की छांव तले तुम्हारा हाथ पकड़ बैठ जाऊंगा ।
तुम आओगी क्या?

नहीं है तुमसे करने मुझे कोई सच्चे झूठे वादे,
ना ही कभी दिल चीरकर दिखाऊंगा।
मैं तो अपने नाम संग तुम्हारे नाम की नेमप्लेट घर के बाहर लगाऊंगा ।
तुम आओगी क्या?

डॉ नीतू दाधीच व्यास
यादगिर, कर्नाटक