हिंदी संग्रह कविता-खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है

खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है

kavita

युगों-युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है,
खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।


इस धरती पर जन्म लिया है, यही पुनीता माता है,
एक प्राण, दो देह सरीखा, इससे अपना नाता है।
यह धरती है पार्वती माँ, यही राष्ट्र शिव शंकर है,
दिग्मंडल साँपों का कुण्डल, कण-कण रुद्र भयंकर है।
यह पावन माटी ललाट पर पल में प्रलय मचाती है,
खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।


इस भू की पुत्री के कारण भस्म हुई लंका सारी,
सुई नोंक-भर भू के पीछे, हुआ महाभारत भारी।
पानी-सा बह उठा लहू था, पानीपत के प्रांगण में,
बिछा दिए पुरयण-से शव वे, इसी तरायण के रण में।


शीश चढ़ाया कटा गर्दनें या अरि-गरदन काटी है,
खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।


सिक्ख, मराठे, राजपूत, क्या बंगाली, क्या मद्रासी,
इसी मन्त्र का जाप कर रहे, युग-युग-से भारतवासी।
बुन्देले अब भी दोहराते, यही मन्त्र है झाँसी में,
देंगे प्राण न देंगे माटी गूंज रहा है रग-रग में।


पृष्ठ बाँचती इतिहासों के अब भी हल्दीघाटी है,
खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।

इस धरती के कण-कण पर है, चित्र खिंचा कुरबानी का,
एक-एक कण छन्द बोलता, चढ़ी शहीद जवानी का।
इसके कण-कण नहीं वरन् ज्वालामुखियों के शोले हैं,
किया किसी ने दावा इस पर, यह दावा-से डोले हैं।


इसे मिटाने बढ़ा उसी ने, धूल धरा की चाटी है,
खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *