कइसे के लगही जाड़ !/ राजकुमार ‘मसखरे

कइसे के लगही जाड़ !

दुंग-दुंग ले उघरा बड़े बिहनिया
झिल्ली,कागज़ बिनैया ल देख,
कचरा म खोजत हे दाना-पानी
तन  म लपटाय फरिया ल देख !

होत मूंदराहा ये नाली, सड़क म
खरेरा,रापा के तैं धरइया ल देख,
धुर्रा, चिखला म जेन सनाय हवै
अइसन बुता के करइया ल देख !

मुड़ म उठाये बोझा,पेलत ठेला
दुरिहा ले आये हे,दुवारी म देख,
हाँका पारत हे तोर गली-गली म
तिर जाके इँखर चिंगारी ल देख !

रात भर पलोवत हे खेत म पानी
अइसन अरझट कहानी  ल देख,
शीत, पानी,चिखला माटी सनाये
ये अन्नदाता के  किसानी ल देख !

सरहद  म उती बर  हे टुहु खेलत
बारूद के जठना,गोला बारी देख,
तोर बर बिहने गरम चाय,पकौड़ा
अउ उँखर देश बर रखवारी देख !

अब येमन ल कइसे लगही जाड़
ये  पेट  म धधकत आगी ल देख,
जाड़ तो  लगथे  बस रजधानी म
उँहे,खादी धारी के पागी ल देख  !

     – *राजकुमार ‘मसखरे’*
            मु.-भदेरा (गंडई)
     जिला-के.सी.जी. (छ.ग.)