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माधुरी मंजरी- हिंदी काव्य

सेवा पर कविता

सेवा वंचित मत रहो,
तन मन दीजे झोक
सेवा मे सुख पाइए,
नहीं लगाओ रोक ।।1।।

जो सेवा संपन्न है ,
देव अंश तू जान ।
इनके दर्शन मात्र से ,
मिलते कई निदान ।।2।।

सेवा का व्यापार कर ,
बनते आज अमीर ।
पीड़ित जन सब मूक हैं
साहब तुम बेपीर ।।3।।

सेवा कुर्बानी चहै
करे अहं का नाश ।
सो अपनाये धर्म को ,
अंतर हृदय प्रकाश ।।4।।

जहाँ कभी भी जो मिले ,
सेवा का रख भाव ।
छोटे ऊँचे नीच लघु ,
कीजे नहीं दुराव ।।5।।

चरित्र पर कविता

मैं मेरा का ज्ञान दे ,
मन की गाँठें खोल ।
राम चरित्र सुनाइए ,
जो अनुपम अनमोल ।।1।।

रामचरितमानस रचे ,
कवि कुल तुलसीदास ।
दोहा चौपाई सदन ,
करते राम निवास ।।2।।

सदाचार अपनाइए ,
चलिए जीवन राह ।
एक यही शुभ साधना ,
छोड़ और परवाह ।।3।।

वही अमर है जगत में ,
जिनके शील चरितव्य ।
उदाहरण अपनाइए ,
अन्य छोड़िये द्रव्य ।।4।।

धर्म ग्रंथ सुनिए सदा ,
करें उसे चरितार्थ ।
जीवन रस मिलते सदा ,
करने को पुरुषार्थ ।।5।।

धनतेरस पर कविता

शल्य शास्त्र के जनक हैं,
   धन्वंतरि भगवान ।
       वेद शास्त्र महिमा सदा ,
           नेति नेति कर गान ।। 1।।

महा वैद्य इस विश्व के ,
   सर्व गुणों की खान ।
       इनके सुमरन मात्र से ,
            मिले निरामय भान ।।2।।

 स्रष्ट्रा आयुर्वेद के ,
     अद्भुत भेषज ज्ञान ।
           जड़ी दवाई बूटियाँ ,
                रचे प्रभु विज्ञान ।।3।।

धनतेरस पर कीजिए ,
    पूजा की शुरुआत ।
         लक्ष्मी माँ हर्षित रहे ,
            धन्वंतरि ऋषि तात ।।4।।

दीवाली के पर्व में ,
     धन्वंतरि श्रीमंत ।
         सबको दें आरोग्यता ,
              करें रोग का अंत ।।5।।

नटवर

 मधुर मिलन की चाह में ,
    गुजरी उम्र तमाम ।
         इत नटवर उत राधिका ,
               तडपत  आठों  याम ।। 1।।

प्रेम त्याग का नाम है ,
      सर्व समर्पण मौन ।
           नटवर श्याम वियोगिनी ,
               जग में  हैं अब कौन ।।2।।

मनमंदिर मूरत बसी ,
    नटवर नंद किशोर ।
         मुदित माधुरी मंजरी ,
              नित्य नमन कर जोर ।। 3।।

मानस रोग

तन के रोगी का सफल ,
    करते सभी इलाज ।
         मन के मानस रोग को,
               पहचानो तुम आज ।। 1।।

षट्विकार से बद्ध तन ,
     रहते हर पल साथ ।
          प्रेरित करते बन प्रबल,
                 इंद्रिय गहते हाथ ।।2।।

काम क्रोध मद लोभ वश ,
   मोह जनित व्यवहार ।
       मुदित माधुरी मंजरी ,
            सद्गुरु चल दरबार ।। 3।।

उद्योग पर कविता

उन्नत पुरुष निहारिए ,
    चलिए उनकी राह ।
         आस-पास को छोड़कर ,
               करिए दूर निगाह ।। 1।।

करिए दूर निगाह तो ,
      कई मिलेंगे लोग ।
           जिनके नित संपर्क से ,
                  होते हैं उद्योग ।।2।।

होते हैं उद्योग में ,
   सफल विफल परिणाम ।
        चित्त लगन एकाग्रता ,
           हासिल करो मुकाम ।।3।।

हासिल करो मुकाम जब ,
   मत करना अभिमान ।
       धन्यवाद का भाव हो ,
           बस इतना रख ध्यान ।।4।।

बस इतना रख ध्यान तू ,
    बने रहो इंसान ।
         मुदित माधुरी मंजरी ,
             मत बनना भगवान ।।5।।

माधुरी डड़सेना ” मुदिता “

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