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मन हो रहा हताश – बाबूलाल शर्मा

मन हो रहा हताश

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. ✨✨१✨✨
हम ही दुश्मन मीत, अपनी भाषा के बने।
बस बड़ बोले गीत, सोच फिरंगी मन वही।।
. ✨✨२✨✨
बदलें फिर संसार, निज की सोच सुधार लें।
दें शिशु हित संस्कार,अंग्रेजी की कार तज।।
. ✨✨३✨✨
चलें धरातल जान, उड़ना छोड़ें पंख बिन।
तब ही हो पहचान, हिन्दी हिन्दुस्तान की।।
. ✨✨४✨✨
ज्ञान मरघटी तात, नशा उतरता शीघ्र ही।
वही ढाँक के पात, गया दिवस हिन्दी मना।।
. ✨✨५✨✨
गाते हिन्दी फाग, एक दिवस त्यौहार बस।
अपनी ढपली राग, बारह महिने फिर वही।।
. ✨✨६✨✨
अपनी हर सरकार, हम सब हैं दोषी बड़े।
हिन्दी का प्रतिकार, स्वार्थ सनेही कर रहे।।
. ✨✨७✨✨
वृद्धाश्रम की शान, कहने को माता महा।
हिन्दी का सम्मान, एक दिवस ही कर रहे।।
. ✨✨८✨✨
हो हिन्दी हित पुण्य, हिन्दी बिन्दी सम रखें।
मत कर हिन्दी शून्य, ऊँचे उड़ कर स्वार्थ मे।।
. ✨✨९✨✨
मन हो रहा हताश, मातृभाष अवमान से।
सत साहित्यिक मान, हिन्दी नेह प्रकाश हो।।
. ✨✨१०✨✨
हिन्दी कवि मन प्यास, लिखे सोरठे दस खरे।
हिन्दी हित की आस, कवियों से ही बच रही।।
. ✨✨🌞✨✨
✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

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