मन पर कविता

सोचा कुछहो जाता कुछ है
मन के ही सब सोच
मन को बांध सका न कोई
मन खोजे सब कोय।।

हल्के मन से काम करो तो
सफल रहे वो काम
बाधा अगर कोई आ जाये
बाधित हो हर काम।।

मन गिरे तन मुरझाये
वैद्य काम नही आये
गाँठे मन गर कोई खोले
सच्चा गुरु वो कहाये।।

मन के ही उद्गम स्रोत से
उपजे सुख व दुख
पाप पुण्य मन की कमाई
देख दर्प अब मुख।।

अंतर्जगत पहुँच सके
पकड़ो मन जी डोर
सच्चा झूठा बतला देता वो
तू रिश्ता रूह से जोड़।।

माधुरी डड़सेना
न. प. भखारा छ. ग .