प्रीत के रंग में-राजेश पाण्डेय *अब्र*
प्रीत के रंग में
गुनगुनाती हैं हवाएँ
महमहाती हैं फ़िजाएँ
झूम उठता है गगन फिर
खुश हुई हैं हर दिशाएँ
प्रीत के रंग में
मीत के संग में,
रुत बदलती है यहाँ फिर
फूल खिल उठते अचानक
गीत बसते हैं लबों पर
मीत मिल जाते अचानक,
रंग देती है हिना जब
मन भ्रमर बनता कहीं पर
गंध साँसों की बिखरती
सौ उमंगें हैं वहीं पर,
हर बरस लगता है मेला
लोग मिल जाते कहीं पर
हाथ आए चाँद फिर तब
ख्वाब पूरे हों वहीं पर
प्रीत के रंग में
मीत के संग में।
राजेश पाण्डेय अब्र
अम्बिकापुर
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद