उसे रूह में समाया है

रूह में समाया है

kavita

माना के उसके जिस्म को भी मैंने चाहा है
मगर उस से ज्यादा उसे रूह में समाया है l

ये सावन उसको भुलाने नहीं देता मुझको
बारिश में उसकी यादों के लम्हे ले आया है l

जब चाँद की चांदनी में निकलता हूँ घर से
मेरा साया भी लगता मुझे उसका साया है l

जब आँखों में मेरे समंदर आके ठहरा है
फिर भी क्यों दिल जैसे सदियों से प्यासा है l

क्यों हर बार की तरह तेरी कलम ने फौजी
दर्द में डूबे डूबे अल्फाजों को लिखवाया है ll

फौजी मुंडे सोहन लाल मुंडे

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