सुंदर विश्व बनाएं-डॉ नीलम

सुंदर विश्व बनाएं


मानव के हाथों में कुदाल
खोद रहा 
अपने पैरों से रहा 
अपनी जडे़ निकाल

अपने अपने झगडे़ लेकर
करता नरसंहार है
विश्व शांति के लिए बस
बना संयुक्त राष्ट्र है

निःशस्त्रिकरण की ओट में
अपने घर में आयुध भंडार भरे
परमाणु की धौंस जता कर
कमजोरों पर वार करें

कितनी कितनी शाखाएँ खोलीं
पर विश्व ना सुखी हुआ
एक देश कुपोषित होता
दूजा महामारी से मरता
थे उद्देश्य बहुत स्पष्ट
विश्व शांति के लिए
पर अपने-अपने व्यापार में सब
बस लाभ के लिए लडे़

एक बार फिर से सबको
पन्ने खंगालने होंगे
क्या क्या करने होंगे बदलाव
फिर से देखने होंगे

परिवर्तन जरुरी अब हो गया
हर राष्ट्र परिपक्व हो गया
बड़ गयीं जरुरते हर एक की
सबको समानता की आस है

भूख मानव की पेट की नहीं
जमीन के टूकडे़ पर वो लड़ रहा
अपनी अपनी अस्मिता की चाहत में वो अड़ रहा

देकर जिसका जो दाय है
सबको संतुष्ट करना चाहिए
व्यर्थ अपने ही हाथों 
ना अपना सर्वनाश करना चाहिए

चलो फिर एक बार 
फिर से कदम बढा़एँ
विश्व जो हो रहा 
टुकड़े-टुकड़े
उसको फिर जोड़ 
सुंदर विश्व बनाएं।

     डा.नीलम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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