मैथिलीशरण गुप्त की 10 लोकप्रिय कवितायेँ

चारु चंद्र की चंचल किरणें / मैथिलीशरण गुप्त चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,मानों झीम[1] रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥ पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला … Read more

गुरु नानक-मैथिलीशरण गुप्त

गुरु नानक-मैथिलीशरण गुप्त मिल सकता है किसी जाति कोआत्मबोध से ही चैतन्य ;नानक-सा उद्बोधक पाकरहुआ पंचनद पुनरपि धन्य ।साधे सिख गुरुओं ने अपनेदोनों लोक सहज-सज्ञान;वर्त्तमान के साथ सुधी जनकरते हैं भावी का ध्यान ।हुआ उचित ही वेदीकुल मेंप्रथम प्रतिष्टित गुरु का वंश;निश्चय नानक में विशेष थाउसी अकाल पुरुष का अंश;सार्थक था ‘कल्याण’ जनक वह,हुआ तभी … Read more