वो हम न थे वो तुम न थे / गोपालदास “नीरज”

वो हम न थे वो तुम न थे / गोपालदास “नीरज”

कविता संग्रह
कविता संग्रह

वो हम न थे, वो तुम न थे, वो रहगुज़र थी प्यार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
ये खेल था नसीब का, न हँस सके, न रो सके
न तूर पर पहुँच सके, न दार पर ही सो सके *
कहानी किससे ये कहें, चढ़ाव की, उतार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
वो हम न थे, वो तुम न थे…


तुम्हीं थे मेरे रहनुमा, तुम्हीं थे मेरे हमसफ़र
तुम्हीं थे मेरी रौशनी, तुम्हीं ने मुझको दी नज़र
बिना तुम्हारे ज़िन्दगी, शमा है एक मज़ार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
वो हम न थे, वो तुम न थे…


ये कौन सा मुक़ाम है, फलक नहीं, ज़मीं नहीं
कि शब नहीं, सहर नहीं, कि ग़म नहीं, ख़ुशी नहीं
कहाँ ये लेके आ गयी, हवा तेरे दयार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
वो हम न थे, वो तुम न थे…


गुज़र रही है तुम पे क्या, बना के हमको दरबदर
ये सोच कर उदास हूँ, ये सोच कर हैं चश्म तर
न चोट है ये फूल की, न है ख़लिश ये ख़ार की
लुटी जहाँ पे बेवजह, पालकी बहार की
वो हम न थे, वो तुम न थे…

तूर = सीरिया का पवित्र पर्वत, जहाँ मूसा को दैवी प्रकाश दिखाई दिया था
दार = सूली, फाँसी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *