लोकगीत व लोक नृत्य

शिवकुमार श्रीवास “लहरी” द्वारा रचित यह दोहा कविता भारतीय लोक कलाओं, विशेषकर लोक नृत्यों के प्रति गहरा आदर और चिंता व्यक्त करती है। कवि ने अपनी कविता के माध्यम से लोक नृत्यों के महत्व, उनकी समृद्ध विरासत और वर्तमान समय में उनकी उपेक्षा के प्रति जागरूकता जगाने का प्रयास किया है।

लोकगीत व लोक नृत्य

लोकगीत व लोक नृत्य


नमन करूँ माँ शारदे, हम सब हैं नादान ।
चले लेखनी अनवरत, दे दो उज्ज्वल ज्ञान ।।
लोक नृत्य गाथा कहूँ, सुनिए धर के ध्यान ।
मौखिक ये सब ज्ञान है, नहीं लिखित है जान ।।
डंडा कर्मा अरु सुवा, गीत ददरिया नाच ।
भाव भंगिमा साथ ले, प्रेम रहे हिय बाच ।।
रावत नाचा देखने, आते हैं बहु लोग ।
रंग बिरंगे वस्त्र में, दिखे गजब संजोग ।।
बाँस गीत को जन सभी, करते बहुत पसंद ।
बहते कथा प्रवाह में, बातें सुन लो चंद ।।
लोरिक चंदा मंच में, नाटक करते साथ ।
प्रेम भावना उर भरे, गौरव मंडित माथ ।।
नाचा गम्मत में दिखे, भाव हँसी भरपूर । 
दर्शक पकड़े पेट को, रहते हँसकर चूर ।।
धरे तमूरा हाथ में, गाकर करते नृत्य ।
देख पंडवानी यहाँ, मंच विधा लालित्य ।।
आज चँदैनी लुप्त है, जन मानस हिय सींच ।
देकर नवजीवन इसे, लाना है अब खींच ।।
गौरा-गौरी देखिए, झूमें सब नर नार ।
शिव विवाह अति शोभनी, हो जाते भव पार ।। – शिवकुमार श्रीवास “लहरी”

व्याख्या

कविता की शुरुआत में कवि माँ शारदे से ज्ञान प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं और फिर लोक नृत्यों के बारे में विस्तार से बताते हैं। वे बताते हैं कि लोक नृत्य मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहे हैं और इनमें समाज की संस्कृति, रीति-रिवाज और भावनाएं समाहित होती हैं।

कवि ने विभिन्न लोक नृत्यों जैसे डंडा, कर्मा, सुवा, गीत ददरिया, रावत नाचा, बाँस गीत, लोरिक चंदा, पंडवानी आदि का उल्लेख किया है। उन्होंने इन नृत्यों की विशेषताओं और इनमें प्रयुक्त होने वाले संगीत व वाद्ययंत्रों का भी वर्णन किया है।

कविता के अंत में कवि चिंता व्यक्त करते हैं कि आज के समय में लोक नृत्यों की लोकप्रियता कम हो रही है और लोग इनकी ओर कम आकर्षित हो रहे हैं। वे चाहते हैं कि लोग लोक नृत्यों को फिर से अपनाएं और इनकी रक्षा करें।

कविता के प्रमुख बिंदु:

  • लोक नृत्यों का महत्व: कवि ने लोक नृत्यों को समाज की संस्कृति और विरासत का एक अहम हिस्सा बताया है।
  • मौखिक परंपरा: उन्होंने बताया कि लोक नृत्य मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहे हैं।
  • विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य: कवि ने विभिन्न प्रकार के लोक नृत्यों का उल्लेख किया है और उनकी विशेषताओं को बताया है।
  • लोक नृत्यों की उपेक्षा: कवि ने चिंता व्यक्त की है कि आज के समय में लोक नृत्यों की उपेक्षा हो रही है।
  • लोक नृत्यों को बचाने की आवश्यकता: कवि चाहते हैं कि लोग लोक नृत्यों को फिर से अपनाएं और इनकी रक्षा करें।

कविता का संदेश: यह कविता हमें लोक कलाओं के प्रति जागरूक होने और उनकी रक्षा करने का संदेश देती है। हमें अपनी संस्कृति और विरासत को सहेजने के लिए लोक कलाओं को बढ़ावा देना चाहिए।

कविता की शैली: यह कविता सरल और सहज भाषा में लिखी गई है। कवि ने लोक नृत्यों का वर्णन करते हुए चित्रात्मक भाषा का प्रयोग किया है।

निष्कर्ष: शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता लोक नृत्यों के महत्व को उजागर करती है और हमें अपनी संस्कृति और विरासत को सहेजने का संदेश देती है। यह कविता हमें लोक कलाओं के प्रति जागरूक होने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।