दृश्य के उस पार / रमेश कुमार सोनी
उस एक दृश्य में उसकी
आँख में मैंने गंभीर ख़ौफ़ देखा
जिसे उन्होंने ही पाल-पोष कर बड़ा किया था
खून से इतनी मोहब्बत की
हुजूम चलती है उनके साथ लार टपकाते
अहंकार से चूर इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं।
दूसरे दृश्य में करुणा है, लाचारी है कि
उसका कोई और मालिक है
माली भी पालता-पोषता है लेकिन
इसका प्रेम छलावा नहीं होता
दोनों का सम्बंध भूख मिटाने से है।
जीभ को यदि लाल रंग पसंद है
तो गाजर, चुकंदर भी कुछ लोग चुन लेते हैं
तो कोई अपनी शक्ति दिखाना चाहता है
फ़र्क तो सदा से ही रहा है
करुणा और हिंसा में।
लोग अनजानी परम्परा से बँधे हैं
लोक लाज का गँड़ासा टँगा है समाज में
सुरा-सुंदरी इसके साथी हैं
पेट को इन मृत पशुओं की कब्र बनाकर
लोग मातम के आँगन में नाच रहे हैं
दूर बच्चा रो रहा है माँ की गोद में
आसमान भी ख़ामोश है।
बेशक अधिकार है आपको रंग चुनने का
इसके विकल्प भी हैं लुत्फ़ उठाने के लिए
आप शाकाहार का चश्मा पहनिए
हरियाली आपके स्वागत में खड़ी मिलेगी
सच्चे प्रेम और करुणा की किल्लोल करती।
किसी भूखे को पूछें कि क्या खाएगा?
वह स्वाद कभी नहीं कहता
अघाय लोगों की
लपलपाती जीभ ही ये तय करती है कि
उसे कौन आहार कब चाहिए।
……
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़