कवि और कविता/सुशी सक्सेना

कवि और कविता/ सुशी सक्सेना

कवि देह है तो उसके प्रान है, कविता।
कवियों के सपनों की जान है, कविता।

भोर की पहली किरण सा कवि,
तो उसका उजाला है, कविता,
मस्त मतवाला मयनशीं कवि,
उसकी मधुशाला है कविता।
कवि धरा गगन सा तो,
दोनों के मिलन का स्थान है, कविता।

चंचल चपल हिरन सा कवि,
कविता उसकी कस्तूरी है,
एक दूसरे के बिना दोनों
की जिंदगी अधूरी है।
कवि परिंदा है तो उसके,
परों की उड़ान है, कविता।

कल कल करती ध्वनी है कविता,
सरिता बन गया कवि,
शाखाएं हैं कविता जिसकी,
जड़ बन गया कवि।
गहन सागर सा कवि, उसके,
मन की लहरों की उफान है, कविता।

सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

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