नाचा पर कविता

शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता ” नाचा” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति और विशेषकर कुंडली विधा पर केंद्रित है। कुंडली नाच छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय नृत्य है जो अपनी अनूठी शैली और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से कुंडली नाच की सुंदरता, उसके पीछे की कहानियां और इसकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर किया है।

नाचा पर कविता

कुंडली-नाचा

नाचा गम्मत में दिखे, अनुपम संस्कृति छाप ।
भिन्न वेश भूषा धरे, नाचे करमा थाप ।।
नाचे करमा थाप, कहानी कहती गाथा ।
ज्ञानी देश विदेश, झुकाते आकर माथा ।।
लुप्त नहीं हो साज, गढ़े हम सुंदर माचा ।
छत्तीसगढ सुजान, देखिए जमकर नाचा ।।

नाचा अपने राज्य के, मंच विधा साकार ।
कर सजीव अभिनय यहाँ, जीवन की हर बात ।।
जीवन की हर बात, करे अभिनय में सारे ।।
गम्मत करते लोग, भेष नर नारी धारे ।
कह लहरी मति मंद, बनायें ऐसा वाचा ।
बने विश्व विख्यात, हमारे मंचित नाचा ।।

नाचा जन जीवन बसे, भतरा नाटा रूप ।
जहाँ आदिवासी करे, बोली मधुर अनूप ।।
बोली मधुर अनूप, कला बस्तर की जानो ।
गम्मत के दो रूप, खड़ी बैठे है मानो ।।
कह लहरी मति मंद, कथा सुन मामा भाँचा ।
बहे भावना धार, करे जब गम्मत नाचा ।।

व्याख्या:

यह कवितानाच को एक उत्सव के रूप में चित्रित करती है जो लोगों को एक साथ लाता है और उनकी संस्कृति को जीवंत रखता है। कवि ने नाच को “अनुपम संस्कृति छाप” और “जीवन की हर बात” का प्रतिनिधित्व करने वाला बताया है। कवि ने इस नाच को “गम्मत” यानी मनोरंजन का माध्यम बताया है और कहा है कि यह नाच लोगों को हंसाता है और खुश करता है।

कवि ने नाच में विभिन्न प्रकार के वेशभूषा और अभिनय को भी दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि इस नाच में लोग विभिन्न प्रकार के किरदार निभाते हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। कवि ने इस नाच को “मंच विधा” भी कहा है, जिसका अर्थ है कि यह एक प्रकार का नाटक है जो एक मंच पर प्रस्तुत किया जाता है।

कवि ने नाच को “बस्तर की जान” भी कहा है। बस्तर छत्तीसगढ़ का एक क्षेत्र है जो अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है। नाच बस्तर की इस संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कवि ने इस नाच को “आदिवासी करे, बोली मधुर अनूप” कहा है, जिसका अर्थ है कि यह नाच आदिवासियों द्वारा किया जाता है और इसमें एक मधुर भाषा का उपयोग किया जाता है।

कवि ने नाच को एक ऐसी कला बताया है जो लोगों को एक साथ लाती है और उनकी भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है। कवि ने कहा है कि जब लोग नाच करते हैं, तो उनकी भावनाएं प्रवाहित होती हैं और वे एक दूसरे के करीब आते हैं।

कविता का सार:

यह कविता कुंडली नाच की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस नाच को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें कुंडली नाच के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

निष्कर्ष:

शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता ” नाचा” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें नाच के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

अतिरिक्त जानकारी:

  • नाच आमतौर पर धान की रोपाई के मौसम में किया जाता है।
  • इस नाच में महिलाएं और पुरुष दोनों भाग लेते हैं।
  • नाच में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोलक, मंजीरा और बांसुरी।
  • नाच को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।

यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।

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