कर्ज पर कविता – मनोरमा चन्द्रा
कर्ज तले जो दब गए,
होते हैं गमगीन।
उसकी निंदा छोड़ तू,
समझ उसे मत दीन।।
कर्ज लिया जो आज है,
उसे नहीं तू भूल।
जो तुमने धोखा दिया,
लूँगा कर्ज वसूल।।
सेठ कर्ज जितना दिया ,
सूद संग की चाह।
हो वसूल सब राशियाँ ,
पूरे होते माह।।
कर्ज दिया जिसने तुझे,
वह व्यक्तित्व महान।
सारे जीवन याद रख,
मान सदा अहसान।।
चिंता करना छोड़ तू,
दिव्य सोच तू धार।
कहे रमा ये सर्वदा,
कर्ज समझ मत भार।।
*~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”*
*रायपुर (छ.ग.)*