महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं
यहाँ पर पद्ममुख पंडा महापल्ली के 10 हिंदी कवितायेँ दिये जा रहे हैं जो आपको बेहद पसंद आएगी.
सच कहना-पद्ममुख पंडा स्वार्थी
सच कहना
अपराध नहीं है
फिर भी लोग
कहते डरते हैं
यूं रोज मरते हैं
सच कहना
बहुत जरूरी है
देश हित में
अपना स्वार्थ त्याग
त्याग विद्वेष राग
सच कहना
सबका कर्त्तव्य है
संसार टिका
सच्चाई के कारण
दुखों का निवारण
सच कहना
लाभदायक होता
समाज हेतु
विसंगतियां खत्म
जागता वही सोता
सच कहना
बहादुरों का काम
झूठ बोलने
असत्य का साथ दे
हो जाते बदनाम
पद्म मुख पंडा स्वार्थी
गुरूदेव के सान्निध्य में
मासूम ही था, पांच वर्ष के वय का,
उत्सुकता थी, दृढ़ निश्चय का,
बताते हैं लोग, एक मूढ़ बालक था,
जो सोचता था, अपनी धून का पक्का!
लड़ता था, झगड़ता था,
अपनी ही बात कहता, अकड़ता था,
माता पिता दोनों ने मुझे स्नेह से पाला,
फिर भेज दिया था, मुझे पाठ शाला!
गुरूदेव के सान्निध्य में
मिला था जो अक्षर ज्ञान
उन अक्षरों में, देखा था नया विहान!
अंक की गणना, सुन्दर वर्ण माला,
रट रट कर सब कंठस्थ कर डाला।
गुरू जो होता है, पथ प्रदर्शक,
शिष्य को शिक्षित और दीक्षित कर,
जीवन मंत्र फूंक कर बनाता व्यापक,
वसुधैव कुटुंबकम् का पाठ, पढ़ाने वाला,
जीवन के तम को हर कर, भर देता उजाला!
#पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली
आत्म ज्ञान
निरंकुश मन पर अंकुश लगाकर
सुप्त संवेदना में चेतना जगाकर
त्यागकर मन से सकल अभिमान
मिलता है तभी किसी को आत्म ज्ञान
निर्भय अविचल स्थितप्रज्ञ होकर
सुख और दुःख की माला पिरोकर
निज के गले में डाल अहम खोकर
स्वार्थ क्रोध वासना को मार कर ठोकर
उदात्तचित्त निर्मल विचार से भरे
मोह माया वासना से नितान्त परे
विश्व कल्याण की कामना करते हुए
परोपकार निरत सबकी पीड़ा हरे
जो करे समाज हित समय दान
जो खोजे सब समस्याओं का समाधान
जो अथक परिश्रम कर बचाए जान
जो सके हर मर्ज को सही पहचान
पद्म मुख पंडा
महा पल्ली
वक्त की बात वक्त पर हो जाए
कौन जाने यह वक़्त फिर आए न आए
वक्त की नजाकत समझ लेना है जरूरी
वक्त बड़ा बेरहम है न जाने अपने पराए समय है बड़ा कीमती मोल कौन चुकाए
अगर हुई चूक तो भरपाई भी हो न पाए
दफ्तर देर पहुंचे तो अफसर आंखें दिखाए
घर न आ सके तो श्रीमती जी मुंह फुलाए वक्त कभी ठहरता नहीं बस चलता ही जाए
वक्त के साथ जो चले वही सफलता पाए
वक्त पर काम हो तो वाकई मज़ा आ जाए
नियत समय पर ही वेतन भी जमा हो जाए दवा समय पर लो तो रोग भी दूर हो जाए
वक्त बेशकीमती है सबको राहत पहुंचाए
वक्त की आवाज़ सुनो कहीं देर न हो जाए
वक्त की इज्ज़त करो कि यही हमें बचाए
पद्म मुख पंडा
महा पल्ली
अंततोगत्वा
ऐसी है विवशता
सिर्फ मुझे है पता
और कोई भी नहीं जानता
क्या है मेरे मन में
कौन सी व्यथा
बचपन से लेकर
बुढ़ापे की उम्र तक
पल पल सालती रही है
ढेरों हैं अनुत्तरित प्रश्न
जिसके जवाब में
सिर्फ टालती रही है
मेरी व्यग्रता उफान पर है
सत्य की खोज करने में
समाज का डर है
मेरी यह विवशता
तोड़कर सारे बन्धन
एक इतिहास रचना चाहती है
जो कलंक लग चुका है
मेरे स्वर्गीय पूर्वजों को
उससे बचना चाहती है
एक झूठ को सच साबित करने
लिख दिए कितने पुराण
धर्म शास्त्र की उपाधि देकर
चलाया कर्मकाण्ड अभियान
अपनी ही दुनिया में
अपने ही लोगों पर
तनिक भी दया नहीं आई
खोद डाली ऐसी अंधविश्वास की खाई
जहां सिर्फ विघटन ही संभव है
अज्ञानता का यह जहर
भर दिया पूरे समाज पर
दे दी कुंठा की लाईलाज बीमारी
जो पीढ़ी दर पीढ़ी है अब तक जारी
कहां गई मानवता
किसी को नहीं इसका पता
पूजा पाठ कर्म कांड
बन गए कमाई का जरिया
नर्क का भय
स्वर्ग का लोभ
कर्मकांडियों ने देश व समाज को
अंध विश्वास का क्या खूब तोहफा दिया!!
इस झूठ का पर्दाफाश होना चाहिए
अंततोगत्वा हमें हमेशा ही
सत्य का साथ देना
न्याय का पक्ष लेना
मन में अटल विश्वास होना चाहिए!
*पद्म मुख पंडा स्वार्थी*
*महापल्ली*
बागी मन
न तो किसी स्वार्थवश
न ही किसी भय के कारण
मैं बागी हो गया हूं
मेरा मन बागी हो गया है!!
देख रहा हूं कि मेरे आसपास
बूढ़ा प्रजातंत्र घूम रहा है उदास
गुंडों के खौफ से
चुप्पी साधे जमीन पर लोट रहा है
त्यागकर जीवन की आस
अरमानों का गला घोंट रहा है
खून का कतरा कतरा बहाकर
मिली हुई जनता की आज़ादी
फिर से काले अंग्रेजों की
भेंट चढ़ गई है
सियासतदानों के पौ बारह हैं
रियासत की ही मुश्किलें बढ़ गई हैं
मुझे राम राज्य का नहीं पता
मुझे तो सिर्फ इतना ही ज्ञात है
कि जनता से बढ़कर कोई नहीं है
जनता दुखी है ये तो बुरी बात है
राजतंत्र के पूरे हो चुके हैं दिन
कभी लौटने वाले नहीं हैं
अब तो जनता ही फैसला लेगी
शिक्षा स्वास्थ्य सड़क बिजली
पानी की व्यवस्था किस तरह से होगी?
नहीं है अभाव कोई मेरे देश में
शस्य श्यामला इस धरती पर
प्रकृति दत्त प्रचुर संसाधन हैं
किसान कर्मठ श्रमवीर हैं
फिर कैसा है यह माहौल व डर?
अपने किरदार को निभाने के लिए
हर किसान/मजदूर को
सामने आना होगा
पूंजीपतियों और दबंगों को
अपना बर्चस्व दिखाना होगा यह धरती किसी एक की बपौती नहीं
इस पर सबका समान अधिकार है
है यह सबकी माता
इस मिट्टी से हर किसी को प्यार है
कुछ करूं मैं भी अपने देश की खातिर
ऐसी तमन्ना अब दिल में जागी है
छोड़ो अब अन्याय और भेदभाव
ऐ मेरे वतन के रहनुमाओं
मैं भी बागी हो गया हूं
ये दिल भी मेरा बागी है!! पद्म मुख पंडा स्वार्थी
आदमी अक्सर बिखर जाता है
भावनाओं से जुड़ी हर बात
जीवन में हर मोड़ पर
जब करने लगे आघात
यंत्रणा झेलकर पाने को निजात
आदमी अक्सर बिखर जाता है
रक्त सम्बन्ध
लगने लगते हैं फीके
बदल जाते हैं
सम्बन्धों के तौर तरीके
स्वार्थ साधन के लिए
भावनाओं का सम्मान ठहर जाता है
समाज बिरादरी के साथ
सामंजस्य बिठाने के लिए
स्वीकारना हर कोई बात
अविवेकपूर्ण हो तब भी
छाती पर रख कर पत्थर
जीते जी ही आदमी मर जाता है
पद्म मुख पंडा**स्वार्थी**
गंतव्य
मैं नितान्त अनभिज्ञ हूं
कि कहां है मेरा गंतव्य
एक पथिक हूं
चलना सीख रहा हूं
नहीं जानता
क्या है मेरा भविष्य
अनजान पथ पर
चल पड़ा हूं
है लक्ष्य बड़ा ही भव्य! हूं कृत संकल्पित
सांसारिक दुखों से
अति व्यथित
लोभ मोह वासना से
कदाचित आकर्षित
मेरा मंतव्य
आच्छादित है
दृश्य पटल पर
पर है जो दृष्टव्य फर्क नहीं पड़ता
कौन क्या कहता है
मेरा चित्त हमेशा
खुद के साथ रहता है
प्रकृति ने मुझे दी है
सोच विचार करने की शक्ति
मस्त रहता हूं
निभाते हुए निज कर्त्तव्य।
पद्म मुख पंडा
ग्राम महा पल्ली
मेरा दायित्व
सोचता हूं
देश और समाज के लिए
बिना किसी विवाद के
अपना कर्त्तव्य निभाऊं
जिसका खाया और पिया है
उसका ऋण चुकाऊं
पर पग पग पर
बाधाओं की बनी हुई है श्रृंखला
अपनों के बीच ही
छल कपट का जोर चला
मेरे बिंदास अंदाज की
बखिया उधेड़ते लोग
मेरी देशभक्ति का मज़ाक उड़ाते हैं
मैं सहम कर रह जाता हूं
क्या है मेरा दायित्व
मेरे देश के लिए
समाज के लिए
धर्म और जाति के आधार पर
बिखरे हुए लोग
जिनके मन में
रोप दी गई है कटुता बैर वैमनस्यता
जिन्हें न भूतकाल की जानकारी है
न ही आगत भविष्य का पता
केवल सत्ता सुख के लिए
भड़काया जा रहा है
आपस में लड़ने के लिए
इतिहास को तोड़ मरोडकर
देश के साथ गद्दारी कर
ये अवांछित तत्व
क्या गढ़ना चाहते हैं?
बिना कुछ किए
चीन अमरीका जापान से
आगे बढ़ना चाहते हैं?
मैं जन्मजात श्रेष्ठता के विरूद्ध हूं
मैं मानव धर्म का हिमायती हूं
मैं कहां गलत हूं?
अपने किरदार को लेकर गम्भीर हो
अपना दायित्व निभाना
क्या अच्छी बात नहीं है?
एक नए युग में प्रवेश करने के लिए
सुन्दर शुरुआत नहीं है?? पद्म मुख पंडा
ग्राम महा पल्ली
जिला रायगढ़ छ ग
झूठ भी एक हकीकत है
झूठ
एक सच्चाई है
झूठ भी एक हकीकत है
झूठ के दम पर
सत्य भी हार जाता है
झूठ का
संसार से गहरा नाता है
झूठ बोलना
एक कला है
झूठ ने अनगिनत बार
सत्य को छला है
झूठ का अस्तित्व
हमेशा चुनौती से भरा है
झूठ से सत्यवादी भी डरा है
न्यायालय में भी
शासकीय कार्यालय में भी
झूठ का बड़ा दबदबा है
उच्च अधिकारी के प्रभाव में
सहायक कर्मी दबा दबा है
झूठे वायदे कर
जीत सकते हैं चुनाव
झूठ बोलकर
बदलते हैं बाजार भाव
ठीक है कि झूठ बुरी बात है
पर आजकल हर जगह
बिछी हुई झूठ की ही बिसात है
झूठ बोलना निंदनीय है
मगर झूठ की अनदेखी
खतरे की सौगात है
झूठ को महत्व दीजिए
संसार भी मिथ्या है
जीवन भी नश्वर है
झूठ की बुनियाद
ढहती जरूर है
पर झूठ से बचने के लिए
सदा सावधान रहिए
पद्ममुख पंडा स्वार्थी
पद्मीरा सदन महापल्ली
जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़
युग परिवर्तन
वेद पुराण उपनिषद् ग्रन्थ सब
पुरुषों ने रच डाला
तर्क वितर्क ताक पर रख कर
किया है कागज काला
सदियों से इस धरा धाम में
झूठ प्रपंच रचाया
मानवता को किया कलंकित
भेदभाव अपनाया
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र में
किया विभाजित जन को
निराधार कारण समाज में
बाँट दिया जन जन को
करके मात्र कल्पना से ही
ईश्वर को रच डाला
और कहा लोगों से
है यह रक्षा करने वाला
संकट की हर घड़ी में
ईश्वर ही एक सहारा
करना निश दिन पूजा इसकी
है सर्वस्व हमारा
वर्णभेद औ जाति प्रथा की
नींव रखी जब उसने
इतना अमंगलकारी होगा
सोचा था तब किसने?
जन्मजात ही ऊंच नीच का
ऐसा पाठ पढ़ाया
हर मनुष्य के मन में विष भर
लोगों.को भड़काया
ब्राह्मण बनकर इस समाज की
कर दी ऐसी तैसी
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
न जाने कैसी कैसी?
पर मित्रों अब हमें चाहिए
परिवर्तन की ज्योति
नया धर्म हो मानवता की
जग में बिखरे मोती
प्रेम और सद्भाव आज की
सबसे बड़ी जरूरत
हम बदलेंगे युग बदलेगा
बदले जग की सूरत
विचारक पद्ममुख पंडा महापल्ली
मेरे जीवन की वक्र रेखा
मैं, एक निहायत शरीफ़ आदमी हूं,
ऐसा लोग अक्सर कहते हैं!
पर उन्हीं महाशयों को, जब जाना,
दूसरों से ,कुढ़ते रहते हैं!
उन शरीफ़ लोगों के साथ,
मुझे भी, वक़्त बिताना पड़ता है,
असहमत होने की स्थिति में भी,
हां में हां मिलाना , पड़ता है!
स्थिति यद्यपि विचित्र है,
तथापि ,इसका, दूसरा भी चित्र है!
गहन विचार करने पर,
एक अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है,
मनुष्यता अभी जीवित है,
तभी, कोई साथ हंसता है, रोता है!
मेरे परिवार में, मुझे कौन प्यार करता है?
यह सवाल, मानस में, बार बार आता है,
माता, पिता,बहन, भाई हर कोई जताता है,
इस नश्वर संसार में, हमारा कौन सा नाता है?
फिर, जब मुड़कर, अपनी ओर, देखता हूं,
मुझे न जाने क्यों, अपराध बोध होता है,
मैं कितना पाखंडी हूं, इस अनुभूति से,
सच कहूं, बहुत क्रोध आता है!
खुद को पाता हूं, निहायत एक स्वार्थी व्यक्ति,
मेरा पूरा तन, पसीने से भीग जाता है!
कितनी रखते हैं, हम, दूसरों से अपेक्षाएं?
बेहतर हो, उनके लिए, कुछ, कर दिखाएं!
अभी भी, अध्ययन करता रहा हूं,
अपने बारे में, अपने कर्मों का लेखा,
यही है, मेरे जीवन की, वक्र रेखा!!
पद्म मुख पंडा,
वरिष्ठ नागरिक, कवि एवं विचारक
सेवा निवृत्त अधिकारी, छत्तीस गढ़ राज्य ग्रामीण बैंक