प्रकृति का इंसाफ पर कविता

प्रकृति का इंसाफ पर कविता

प्रकृति का इंसाफ पर कविता

कायनात में शक्ति परीक्षा,दिव्य अस्त्र-शस्त्र परमाणु बम से |
सारी शक्तियां संज्ञा-शून्य हुई ,प्रकृति प्रदत विषाणु के भ्रम से |
अटल, अविचल, जीवनदायिनी ,वसुधा का सीना चीर दिया |!
दोहन किया युगो- युगो तक,प्रकृति को अक्षम्य पीर दिया ||
सभ्य,सुसंस्कृत बन विश्व पटल पर,कर रहे नित हास-परिहास |

त्राहिनाद गूंज रहा चहुं ओर ,अब प्रकृति कर रही अट्टाहास ||
सृष्टि के झंझावत में बहकर ,क्षितिज ने प्राचीर मान लिया |
पारावर की लहरो ने भी,आज अलौकिक विप्लव गान किया |

ध्वनि,धूल,धुंआ,धूसर मुक्त धरा,तामसी पर्यावरण दे रहा उपहार |
अमिय बरसा रही प्रकृति,दानव सीख रहे सौम्य शील व्यवहार|

नगपति,कान्तार,हिमशिखा ने,खग, मृग, अहि का मान किया
सरसिज खिले,निर्झरिणी मचली,रत्नगर्भा ने अभयदान दिया |
द्रुमदल के ललाट शिखर पर,मराल, कलापी, कोयल कूंजे |
सरिता का पावन निर्मल जल,क्षणप्रभा की चमक से गूंजे ||


नाम -मोहम्मद अलीम
विकास खण्ड -बसना
जिला -महासमुन्द
राज्य -छत्तीसगढ़

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