मजदूर की दशा पर हास्य व्यंग्य
दिख रहा तेरा अंजरपंजर ,
बना रहा है तू अट्टालिकायें,
रहता है झुग्गी झोपड़ियों में ,
दूसरो के लिये बना रहा है रेशमी महल |
तुझे तो बस दिन भर की पगार चाहिए ,
तिबासी भोजन खाकर,
अपने आप को टुटपूँजीया बना रहा है |
नित बोलता है तू गजर-बजर
बदल रहा है तू सरकारे
तुझे चाहिए दो वक्त की रोटियां
सजा रहा है मखमली रेशमी सेज |
तुझे तो दिहाड़ी पर जाना है ,
मजदूर होकर ,
खुल्लमखुल्ला डंका बजा रहा है |
लोग कहते है तुझे डपोरशंख,
तू चला रहा मशीनरी उद्योग ,
तुझे तो रोज विश्राम चाहिए ,
बना रहा है दूसरो के लिये रेशमी सड़क |
तुझे तो पगडंडीयो पर चलना है ,
पददलित होकर,
धर्म का मटियामेट कर रहा है |
करता है तू लल्लो-चप्पो ,
अशिक्षित होकर बांध बना रहा है ,
पीना तुझे है गंदला पानी,
दूसरो के लिये बना रहा है रेशमी जलयान |
तुझे तो अपने परिवार का पेट भरना है ,
लतखोर शराब पीकर
समाज की नजरो में बिलबिला रहा है |
मोहम्मद अलीम
बसना जिला-महासमु़ंद