दहेज प्रथा अभिशाप है – बाबूराम सिंह

दहेज प्रथा अभिशाप है

दानव क्रूर दहेज अहा ! महा बुरा है पाप ।
जन्म-जीवन नर्क बने,मत लो यह अभिशाप।।
पुत्रीयों के जीवन में ,लगा दिया है आग।
खाक जगत में कर रहा,आपस का अनुराग।।

जलती हैं नित बेटियाँ ,देखो आँखें खोल।
तहस-नहस सब कर दिया,जीवन डांवाडोल।।
पुत्री बिना सम्भव नहीं ,सृष्टि सरस श्रृंगार ।
होकर सब कोइ एकजुट,इसपर करो विचार।।

अवनति खाई खार यह ,संकट घोर जहान।
दुःख पावत है इससे , भारत वर्ष महान।।
मानवता क्यों मर गयी,जन्म जीवन दुस्वार।
नाहक में क्यों छीनते ,जीने का अधिकार ।।

पग बढा़ओ एक-नेक हो,बढे़ परस्पर प्यार।
त्यागो सभी दहेज को,पनपे तब सुख-सार।।
बिन दहेज शादी करो,फरो जगत दरम्यान।
पाओसुख सुयशअनुपम,खुश होंगेभगवान।।

दानों में सबसे बडा़ ,जगत में कन्यादान।
अग- जग सु अनूठा बने ,जागो हे इन्सान।।
अतिशय दारुणदुख यहीं,करोइसका निदान।
दिन-दिन मिटता जारहा,मानवकी पहचान।।

अधम,अगाध दहेजहै ,साधो मोक्ष का व्दार।
जिससे सुख पाये सदा, शहर गांव परिवार।।
ज्ञानाग्नि में भस्म कर ,बद दहेज का नाम।
चारों धामका फल मिले सच कवि बाबूराम।।

—————————————————-
बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)841508
मो0नं0 – 9572105032
—————————————————

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *