इश्क़ के रोग की गर तू जो दवा बन जाए

इश्क़ के रोग की गर तू जो दवा बन जाए ।

रात दिन भीगते है बिन तेरे मेरे नैना
बिन तेरे मिलता नही मुझको अब कही चैना
हर घड़ी याद की भरी स्याही
मुझको तड़पाने रात ले आईं
तू जो बारिश की तरह आके मुझे मिल जाए,
बादलों की तरह ये दर्द हवा हो जाये ।।

इश्क़ के रोग की गर तू जो दवा बन जाए ।

छोड़ के जब तू गया तन्हा तन्हा था मुझको
क्यूं मेरे दर्द का ना इल्म हुआ था तुझको
कर रहे मेरे ये एहसास आज मुझसे गिला
दिल्लगी करके उससे दर्द के शिवा क्या मिला
लौट के जिंदगी में मेरी फिर तू आ जाए,
प्यार बन करके वफा रग रग में रवां हो जाए ।।

इश्क़ के रोग की गर तू जो दवा बन जाए ।

माना तुझको मेरी किस्मत में नहीं पाना हैं
फिर भी ताउम्र तुझे बस तुझे ही चाहना हैं
छोड़ के चल ही दिया हांथ तूने जब मेरा
ये तो बतलादे हांथ तूने किसका थामा है
ऐ सनम दर्द को कुरेद मत तू अब इतना,
सो चुके दर्द मेरे फिर से जवां हो जाये ।।
इश्क़ के रोग की गर तू जो दवा बन जाए ।

शिवांगी मिश्रा

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