अभाव-गुरु

अभाव-गुरु

“उस वस्तु का नहीं होना” मैं,
जरूरत सभी जन को जिसकी।
प्रेरक वरदान विधाता का,
सीढ़ी मैं सहज सफलता की।।1
अभिशाप नहीं मैं सुन मानव,
तेरी हत सोंच गिराती है।
बस सोंच फ़तह करना हिमगिरि,
यह सोंच सदैव जिताती है।।2
वरदान और अभिशाप मुझे
तेरे ही कर्म बनाते हैं।
असफल हताश,औ’ कर्मविमुख
मिथ्या आरोप लगाते हैं।।3
तीनों लोकों में सभी जगह,
मैंने ही पंख पसारे हैं।
सब जूझ रहे हैं,सफल वही
जो मुझसे जंग न हारे हैं।।4
मैं महोत्थान जिनका चाहूँ
अगनित परीक्षा उनकी लेता।
गुरुश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हूँ मैं,
नित ब्रह्मज्ञान सबको देता।।5
पड़ते ही चारु चरण मेरे,
नित ज्ञान-चक्षु सबके खुलते।
बुधिबल,विवेक वर पाकर जड़
सीढ़ी सर्वोच्च सदा चढ़ते।।6
श्रद्धा,निष्काम मनः युत जन
जो गुरु चरणों में आते हैं।
इच्छित वर पा गुरु-सेवा से,
सब ताप-शोक को खोते हैं।।7
जो दृढ़प्रतिज्ञ,दृढ़ निश्चय कर,
नित एक लक्ष्य ले चलते हैं।
चित चाह बढ़ा,श्रम कर्ता को,
जीवन-फल सुंदर मिलते हैं।।8
अलसाये,कर्म विरत जन ही
नित रोते हैं रोना मेरा।
चढ़ भावों की उत्तुंग-शिखर,
होगा न भाल कुअंक तेरा।।9
निखार मांज कर सभी जन को,
जीवन-रहस्य मैं समझाता।
जो हार मान चुप बैठे हैं,
ऊर्जा अपार उनमें भरता।।10
जो जन मुझसे प्रेरित होकर,
कर्माभिमुख सदा हो जाते।
लिख एकलव्य सम निज किस्मत,
उसकी हर काज सफल होते।।11
शक्ति असीम निज मन में जगा,
सन्तान महा ऋषिवर मनु के,
निष्ठा रख गुरु पद,आरुणि-सा,
ये दाता हैं सब सुफ़लों के।।12
पदसेवा में अभाव-गुरु की,
तन-मन-धन-जीवन वारोगे।
कंचन-सा तपकर निखरोगे,
जीवन का दाव न हारोगे।।13
सिद्धांत,सांख्यदर्शन का है
‘कार्योत्पत्ति’ सभी, ‘कारण’ से।
मैं ही कारण सब कार्यों का,
सारे विकास ही हैं मुझसे।।14
सृष्टि-विकास,इसी से सर्जन,
जननी हर निर्मित चीजों की।
कर्ता की प्रेरक शक्तिमहा,
करते जब सेवा अभाव की।।15
जब एक अभाव पूरित होता,
तब जन्म दूसरा लेता है।
सृष्टि-विकास सदा से इससे,
नवीन वस्तु हमें देता है।।16
युगल किशोर पटेल
सहायक प्राध्यापक(हिंदी)
शासकीय वीर सुरेंद्र साय महाविद्यालय, गरियाबंद
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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