जलती धरती/ आशा बैजल


आशा बैजल की जलती धरती नामक हिंदी कविता में विभिन्न भावनाओं और संवेदनाओं को समाहित है। “जलती धरती” एक कविता है जो धरती की संताप और विपदाओं को बयान करती है।

“जलती धरती” में, कविताकार धरती के विभिन्न प्राकृतिक विपदाओं की चर्चा करते हैं, जैसे कि वन जलन, भूकंप, बाढ़, और वायु प्रदूषण। यह कविता जनता को प्रेरित करती है कि वे पर्यावरण के प्रति सजग और सावधान रहें, ताकि हम स्वस्थ और सुरक्षित रह सकें।

इस कविता के माध्यम से, हमें धरती की सुरक्षा की महत्ता को समझने की प्रेरणा मिलती है, और हमें इसे सुरक्षित और स्वस्थ रखने के लिए अपना योगदान देने की जरूरत है।

जलती धरती/आशा बैजल


सूरज उगता ,ढलता अंधियारा
रोज सुबह लगता बहुत प्यारा
साफ आसमान , फैला उजियारा
चमक रहा तेजपुंज का गोला
चहचहाती चिड़िया ,टें-टें करते तोते
नील गगन में उड़ते, पाखी छोटे-छोटे
पेडों की हरियाली,
रंगबिरंगे फूलों की ड़ाली,
गुनगुनाते भौंरे , रस पान करती वो तितली
झर झर बहते झरने, कलकल करती नदियाँ
पशुओं को लुभा रहा,
घने जंगलों का डेरा
अबाध चक्का घूम रहा था,
प्रकृति संतुलन बना हुआ था,
स्वार्थी मानव बन गया दानव
तोड़े पहाड़, काटे जंगल ,
बाँध दिया नदियों का जल,
कम हुई हरियाली ,विशुद्ध हुआ पानी,
बंजर बनी ज़मीन, विलुप्त हुए प्राणी,
न रहा आसमान धवल ,
न चमचम चमकते तारे अब,
आदित्य भी धुँधला रहा,
वायु में ज़हर घुल रहा,
प्रकृति को मानव ने छेड़ा है,
वसुधा का रूप बिगाड़ा है,
धरती पर आग लगाई है
बच न सकेगा अब विनाश से
जलती धरती का अभिशाप हैै

आशा बैजल
ग्वालियर (M.P)