जीना अब आसान नहीं है

*ग़ज़ल* बहर- 2222 2222
काफिया- आन, रदीफ़- नहीं है

जीना अब आसान नहीं है

जग में सब का मान नहीं है,
हीरों की अब खान नहीं है।।

पहले सा अब  काम नहीं है,
इतनी भी पहचान  नहीं है।।

अपने ही रखते हैं  खंजर,
जीना अब आसान नहीं है।।

खूब मिलावट करते हैं क्यों?
अब अच्छा सामान नहीं है।।

जिसको हमने मान दिया था,
करता वह सम्मान नहीं है ।।

रोज  यहाँ  बीमारी  होती,
पहले सा जल-पान नहीं है।।

जो करता है दगा सभी से,
देखो  वह  इंसान नहीं है।।

भ्रम की इस दुनिया में हमको,
असली की पहचान नहीं है।।

झूठ बोलता हर मानव अब,
सच की रही जबान नहीं हैं ।।

झूठ मिले हर चौराहे पर
सच की कोई दुकान नहीं है।।

कलयुग में भगवान भी बिकते
राम भगत हनुमान नहीं  है।।

कलियुग में लगता  है ऐसा,
राम नहीं, रहमान नहीं  है।।

“राज” देश का किसको सौंपे,
लायक कोई  प्रधान नहीं है।।

*कवि कृष्ण कुमार सैनी “राज”,दौसा,राजस्थान

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