चाह गई चिंता मिटी: एक प्रेरणादायक कविता

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥

रहीम कहते हैं कि किसी चीज़ को पाने की लालसा जिसे नहीं है, उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं हो सकती। जिसका मन इन तमाम चिंताओं से ऊपर उठ गया, किसी इच्छा के प्रति बेपरवाह हो गए, वही राजाओं के राजा हैं।


स्रोत :पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 82) रचनाकार : रहीम प्रकाशन : वाणी प्रकाशन संस्करण : 1985

कविता का महत्व

कविताएँ हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक सुंदर माध्यम हैं। वे हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं और हमें जीवन के विभिन्न अनुभवों से जोड़ती हैं। ‘चाह गई चिंता मिटी’ एक ऐसी कविता है जो न केवल चिंता को दूर करती है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता लाने की प्रेरणा भी देती है।

चिंताओं का प्रभाव

हमारी दिनचर्या में चिंता एक सामान्य भावना है, लेकिन इसे नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। इस कविता में चिंता को दूर करने और मन की शांति प्राप्त करने पर जोर दिया गया है। जब हम अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं से मुक्त होते हैं, तो जीवन का असली आनंद हमारे सामने आता है।

प्रेरणा और आशा

‘चाह गई चिंता मिटी’ हमें यह सिखाती है कि हमें अपने चिंताओं के चक्र से बाहर आकर जीवन का मजा लेना चाहिए। यह कविता हमें बताती है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमें सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। जब हम आंतरिक शांति प्राप्त करते हैं, तब हमारे अंदर से एक नई ऊर्जा का संचार होता है।