मौत पर कविता

मौत पर कविता

जिस दिन पैदा हुआ
उसी दिन
लिख दिया गया था
तेरे माथे पर मेरा नाम ।
दिन, तिथि ,जगह सब तय था
उसी दिन।
हर कदम बढ़ रहा था तेरा
मेरी तरफ।
पल पल ,हर पल ।।
तेरी निश्छल हँसी
तेरा प्यारा बचपन देखकर
तरस आता था मगर
सत्य से दूर
तू भागता ही गया
ज्यों ज्यों तू करीब आ रहा था मेरे
तेरी निश्छल हँसी को जकड़ता जा रहा था दर्प
भूलता जा रहा था तू मुझे
और मैं अटल सत्य।
देख !देख!
मैं करीब !बहुत करीब !
आ गले लगा मुझे !
समा मेरी आगोश में
मेरी पकड़ में तुझे आना ही है
अटल सत्य ।
मैं अंत जिंदगी का ।
मैं अंधकार हूँ ।
मैं जहाँ से नहीं निकलती कोई गली ।
कोई चौराहा  नहीं।
न वहाँ कोई डर।
बस वहाँ है समर्पण ।
सब मुझे ।
मैं वही मौत  हूँ।
जहाँ से कुछ भी नहीं तेरे लिए
फिर एक दिव्य प्रकाश
और यह विस्तृत आकाश
मैं वही सत्य हूँ।

सुनील_गुप्ता केसला रोड सीतापुर

सरगुजा छत्तीसगढ

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