आदमी का प्रतिरूप पर कविता

आदमी का प्रतिरूप पर कविता
-विनोद सिल्ला

आदमी
नहीं रहा आदमी
हो गया यन्त्र सा

जिसका नियन्त्रण है
किसी न किसी
नेता के हाथ
किसी मठाधीश के हाथ
या फिर किसी
धार्मिक संस्था के हाथ
जिसका आचरण है नियंत्रित
उपरोक्त द्वारा
आदमी होने का
आभास सा होता है
बस आदमी का
प्रतिरूप सा लगता है

आज का आदमी
नहीं रहा
आदमी सा
जाने कहां खो गई
आदमीयत

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