ऋतुराज बसंत पर दोहे

ऋतुराज बसंत पर दोहे

माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami
माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami

धरती दुल्हन सी सजी,आया है ऋतुराज।
पीली सरसों खेत में,हो बसंत आगाज।।1।।


कोकिल मीठा गा रही,भांतिभांति के राग।
फूट रही नव कोंपलें , हरे भरे हैं बाग।।2।।


पीली चादर ओढ़ के, लगती धरा अनूप।
प्यारा लगे बसंत में, कुदरत का ये रूप।।3।।


हरियाली हर ओर है , लगे आम में बौर।
हुआ शीतअवसान है,ऋतु बसंत का दौर।।4।।
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फैल रहा चहुँ और है, बिखरा पुष्प पराग।
निर्मल जल से पूर्ण हैं,नदियाँ ताल तड़ाग।।5।।


प्रकट हुई माँ शारदे,ऋतु बसंत के काल।
वीणापुस्तकधारिणी, वाहन रखे मराल।।6।।


फूल फूल पर बैठता,भ्रमर करे गुंजार।
फूलों से रस चूसता,सृजन करे रस सार।।7।।


कुदरत ने खोला यहाँ, रंगों का भंडार।
अद्भुत प्रकृति की छटा,फूलों काश्रृंगार।।8।।


सुंदर लगे वसुंधरा, महके हर इक छोर।
दृश्य सुनहरा सा लगे,ऋतु बसंत मेंभोर।।9।।


नया नया लगने लगा,कुदरत का हर रूप।
ऋतु बसंत के काल मे,लगे सुहानी धूप।।10।।

©डॉ एन के सेठी

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