कुण्डलिया शतकवीर- बाबूलाल शर्मा

कुण्डलिया शतकवीर – बाबूलाल शर्मा

१. *वेणी*

मिलती संगम में सरित, कहें त्रिवेणी धाम!
तीन भाग कर गूँथ लें, कुंतल वेणी बाम!
कुंतल वेणी बाम, सजाए नारि सयानी!
नागिन सी लहराय, देख मन चले जवानी!
कहे लाल कविराय, नारि इठलाती चलती!
कटि पर वेणी साज, धरा पर सरिता मिलती!

२. *कुमकुम*

माता पूजित भारती , अपना हिन्दुस्तान!
समर क्षेत्र पूजित सभी, उनको तीरथ मान!
उनको तीरथ मान, देश हित शीश चढ़ाया!
धरा रंग कर लाल, मात का मान बढ़ाया!
शर्मा बाबू लाल , भाल पर तिलक लगाता!
रजकण कुमकुम मान, पूजता भारत माता!

३ *पायल*

बजती पायल स्वप्न में, प्रेमी होय विभोर।
कायर समझे भूतनी, डर से काँपे चोर।
डर से काँपे चोर, पिया भी करवट लेते।
जगे वियोगी सोच , मनो मन गाली देते।
शर्मा बाबू लाल, यशोदा हरि हरि भजती।
हँसे नन्द गोपाल, ठुमकते पायल बजती।

४- *कंगन*

पहने चूड़ी पाटले , कंगन मुँदरी हार।
हिना हथेली में रचा, तके पंथ भरतार।
तके पंथ भरतार, मिलन के स्वप्न सँजोये।
बीत रहे दिन माह, याद कर जो पल खोये।
शर्मा बाबू लाल , न चाहत मँहगे गहने।
याद पिया की साथ, हाथ बस कंगन पहने।

५- *काजल*

भाता भारत मात को , रक्षा हित बलिदान।
बिँदिया काजल त्रिया को,सदा सुहाग निशान।
सदा सुहाग निशान, रहे होठों पर लाली।
कुमकुम से भर माँग, सजे नारी मतवाली।
शर्मा बाबू लाल , मान हर नारी माता।
भारत माता सहित, मात का यश गुण भाता!

६- *गजरा*

धरती दुल्हन सी सजी, हरित पीत परिधान।
शबनम चमके भोर में, भारत भूमि महान।
भारत भूमि महान, ताज हिम का जो पहने।
पर्वत खनिज पठार,सरित वन सरवर गहने।
कहे लाल कविराय, नारि गजरे से सजती।
हिम से निकले धार, नीर से सजती धरती!

७- *बिन्दी*

नारी भारत की भली, जब हो बिन्दी भाल।
विविध रंग की ये बने, सुंदर सजती लाल।
सुन्दर सजती लाल, शान सम्मान सिखाए।
शान भारती मात, शहादत पंथ दिखाए।
शर्मा बाबू लाल, अंक की छवि विस्तारी।
बढ़ता मान अकूत, लगाए बिन्दी नारी!

८. *डोली*

डोली तेरे भाग्य से, चिढ़े साज शृंगार।
दुल्हन ही बैठे सदा, उत्तम रखे विचार।
उत्तम रखे विचार, संत जैसे बड़भागी।
डोली दुल्हन संग, रहो तुम सदा सुहागी।
शर्मा बाबू लाल , सुता की भरना झोली।
उत्तम वर के साथ, विदा बेटी की डोली।

९ *चूड़ी*

नारी पर हँसते कहे, चूड़ी वाले हाथ।
जाने क्यों जन भूलते,विपदा में तिय साथ।
विपदा में तिय साथ, लड़ी थी वह मर्दानी।
लक्ष्मी पद्मा मान, गुमानी हाड़ी रानी।
शर्मा बाबू लाल, नारियाँ बने दुधारी।
कर्तव्यों के बंध, पहनती चूड़ी नारी।

१० *झुमका*

झुमका लटके कान में, बौर आम ज्यों डाल।
गहनों के परिवेश में, झुमके रहे कमाल।
झुमके रहे कमाल,गीत कवि जिन पर गाता।
कभी बीच बाजार, कहीं झुमका गिर जाता।
कहे लाल कविराय, नृत्य में जैसे ठुमका।
नारी के शृंगार, अजब है गहना झुमका!

११ *आँचल*

धानी चूनर भारती, आँचल भरा ममत्व।
परिपाटी बलिदान की,विविध वर्ग भ्रातृत्व।
विविध वर्ग भ्रातत्व, एकता अपनी थाती।
आँचल भरे दुलार, हवा जब लोरी गाती।
शर्मा बाबू लाल, करें हम क्यों नादानी।
माँ का आँचल स्वच्छ ,रहे यह चूनर धानी।

१२ *कजरा*

कजरा से सजते नयन, रहे सुरक्षित दृष्टि।
बुरी नजर को टालता,अनुपम कजरा सृष्टि।
अनुपम कजरा सृष्टि, साँवरे में गुण भारी।
चढ़े न दूजा रंग, कृष्ण आँखे कजरारी।
शर्मा बाबू लाल, बँधे जूड़े पर गजरा।
सुंदर सब शृंगार, लगे नयनों में कजरा।

१३ *जीवन*

मानव दुर्लभ देह है, वृथा न जीवन जान।
लख चौरासी योनियाँ, जीवन मनुज समान।
जीवन मनुज समान, देव स्वर्गों के तरसे।
रमी अप्सरा भूमि, कई थी लम्बे अरसे।
शर्मा बाबू लाल, धर्म जीवन का आनव।
कर उपकारी कर्म, मनुज बन जाओ मानव।
*आनव~मानवोचित*

१४. *उपवन*

सीता जग माता बनी, जन्मी हल की नोक।
घर से वन उपवन गई, विपदा संग अशोक।
विपदा संग अशोक, वाटिका सिया वियोगी।
भटके वन वन राम, किया छल रावण जोगी।
शर्मा बाबू लाल, बया बिन उपवन रीता।
वन उपवन मय राम, पंचवट रमती सीता।

. १५. *कविता*
कविता काव्य कवित्त के, करते कर्म कठोर।
कविजन केका कोकिला,कलित कलम की कोर।
कलित कलम की कोर, करे कंटकपथ कोमल।
कर्म करे कल्याण, कंठिनी काली कोयल।
कहता कवि करजोड़, करूँ कविताई कमिता।
काँपे काल कराल, कहो कम कैसे कविता।
*कमिता ~कामना*

१६. *ममता*

ममता मूरत मानिये, मन्नत मन मनुहार।
महिमा मय मनभावना, मात मंगलाचार।
मात मंगलाचार, मायका मामा मामी।
प्यार प्रेम प्रतिरूप , पंथ पीहर प्रतिगामी।
कहता कवि करबद्ध, सिद्ध संतो सी समता।
जंगम जगती जान, महत्ता माँ की ममता।

. १७. *बाबुल*
बेटी घर में जन्म ले, मान भाग वरदान।
माँ को गर्व गुमान हो, बाबुल के कुल शान।
बाबुल के कुल शान, बनेगी बेटी पढ़ कर।
उभय वंश अरमान, पालती बेटी बढ़ कर।
कहे लाल कविराय, मरे खेटी आखेटी।
बाबुल कुल समृद्ध, चाह रखती हर बेटी।
*खेटी ~ चरित्रहीन*

. १८ *भैया*
भैया बलदाऊ बड़े, छोटे कृष्ण कुमार।
हँसते खेले चौक में, करते नंद दुलार।
करते नंद दुलार, अंक में वे भर लेते।
ले कंधे बैठाय, कभी वे ताली देते।
शर्मा बाबू लाल, मंद मुस्काए मैया।
हो सबके सौभाग्य, रहें मिल ऐसे भैया।

. १९. *बहना*
बंधन रिश्तों के निभे, रीत प्रीत अरमान।
प्यारी बहना चंद्र की, भारत भूमि महान।
भारत भूमि महान, गंग नद यमुना बहना।
बहना गंध समीर, भाव बहना कवि गहना।
कहे लाल कविराय,न बहना काजल चंदन।
पावन प्रीत प्रतीक, रक्ष बहना शुभ बंधन।

. २०. *सखियाँ*

सखियाँ दुखिया हो रही, सहती कृष्ण वियोग।
उद्धव भँवरा बन रहा, ज्ञान बाँटता योग।
ज्ञान बाँटता योग, पन्थ निर्गुण समझाए।
सुनकर गोपी ज्ञान, भ्रमर का हृदय लुभाए।
शर्मा बाबू लाल, देख अलि झरती अँखियाँ।
हारा उद्धव ज्ञान, प्रेम पथ जीती सखियाँ!

. २१. *कुुनबा*

बातें बीती वक्त भी, प्रेम प्रीत प्राचीन।
था कुनबा सब साथ थे, एकल अर्वाचीन।
एकल अर्वाचीन, हुए परिवारी सारे।
कुनबे अब इतिहास , पराये पितर हमारे।
शर्मा बाबू लाल , घात प्रतिधात चलाते।
रोते बूढ़े आज, सोच कुनबे की बाते।

. २२. *पीहर*

पालन प्रीति परम्परा, पीहर प्रिय परिवार।
प्रेम पत्रिका पा पगे, प्रियतम पथ पतवार।
प्रियतम पथ पतवार, प्राण प्यारे परदेशी।
परिपालन परिवार, प्रथा पालूँ परिवेशी।
प्रकटे परिजन प्यार, पालते प्रण पंचानन।
परमेश्वर प्रतिपाल, पृथा पीहर पथ पालन!

. २३. *पनघट*
झीलें बापी कूप सर, सरिताओं के घाट!
आतुर नयन निहारते, पनिहारी की बाट!
पनिहारी की बाट, मिलें कुछ बातें करते!
रीत प्रीत मनुहार, शिकायत मन की धरते!
कहे लाल कविराय, स्रोत जल बचे न गीले!
कचरा पटके लोग, भरे पनघट सब झीलें!

. २४. *सैनिक*
सैनिक रक्षक देश के, हैं जैसे भगवान!
रखें तिरंगा मान को, मरे शहादत शान!
मरे शहादत शान, चाह बस कफन तिरंगा!
भारत रहे अखण्ड, बहे जल यमुना गंगा!
कहे लाल कविराय, प्राण दे जनहित दैनिक!
मात भारती पूत, नमन है तुमको सैनिक!

. २५. *कोयल*
कोयल काली कंठिनी, कागा कीर कमान!
कुरजाँ, केकी कामिनी, करे कंठ कलगान!
करे कंठ कलगान, किसान कपोत उड़ाते!
कोयल का मधु गान, तदपि सब काग बुलाते!
कहे लाल कविराय,भली अलि लगती कोपल!
चाहे दुख में काग, खुशी मन भाए कोयल!

. २६- *अम्बर*
अवनी अम्बर कब मिले,आन अमर अहसास!
धरती अब ये आकुला, आषाढ़ी बस आस!
आषाढ़ी बस आस, करें खेती तो कैसे!
महँगाई की मार, कहाँ से लाएंँ पैसे!
कहे लाल कविराय, सूखती भू की धमनी!
अम्बर करे निहाल, हरित तब होगी अवनी!

. २७. *अविरल*
अविरल गंगा धार है, अविचल हिमगिरि शान!
अविकल बहती नर्मदा,कल कल नद पहचान!
कल कल नद पहचान, बहे अविरल सरिताएँ!
चली पिया के पंथ, बनी नदियाँ बनिताएँ!
शर्मा बाबू लाल, देख सागर जल. हलचल!
जल पथ यातायात, सिंधु सरि चलते अविरल!

. २८ *सागर*
जलनिधि तू वारिधि जलधि, जलागार वारीश!
सिंधु अब्धि अंबुधि उदधि, पारावार नदीश!
पारावार नदीश , समन्दर तुम रत्नाकर!
नीरागार समुद्र , पंकनिधि अर्णव सागर!
नीरधि रत्नागार, नीरनिधि. कंपति बननिधि!
मत्स्यागार पयोधि, नमन तोयधि हे जलनिधि!

. २९- *अनुपम*
अनुपम संस्कृति है यहाँ, अनुपम अपना देश!
विविध धर्म अरु जातियाँ, रहे संग परिवेश!
रहे संग परिवेश, भिन्न जलवायु प्रदेशी!
बोली विविध प्रकार, चाह बस हिन्द स्वदेशी!
कहे लाल कविराय, त्याग मय धरती निरुपम!
रीत प्रीत व्यवहार, तिरंगा भारत अनुपम!

. ३०- *धड़कन*
धड़कन भारतवर्ष की, दिल्ली कहें सुजान!
हृदय देश का है यही, संसद शासन शान!
संसद शासन शान, राजधानी यह दिल्ली!
राज तंत्र से अद्य, रही शासन की किल्ली!
शर्मा बाबू लाल , सदा सत्ता मय थिरकन!
दिल्ली अपनी शान, रहेगी दिल की धड़कन!

. ३१ *वीणा*
वीणा में स्वर है नहीं, होती निश्चल मौन!
होता वादक मौन है, स्वर देता है कौन!
स्वर देता है कौन, कहाँ से ध्वनि आ जाती!
अहो शारदा मात, कंठ वीणा में आती!
कहे लाल कविराय, सरे लय गीत अम्हीणा!
कसें संतुलित तार, गीत लय बजती वीणा!
*अम्हीणा~हमारा*

. ३२. *नैतिक*
शिक्षा ऐसी दीजिये, नैतिक रहे विचार!
आन मान अरमान के, सीखें सद आचार!
सीखें सद आचार, भले संस्कार सिखावें!
मान ज्ञान विज्ञान, देश की शक्ति दिखावें!
शर्मा बाबू लाल, चाह सदगुण की भिक्षा!
उत्तम बने स्वभाव, देश हित नैतिक शिक्षा!

. ३३ *विजयी*
हल्दीघाटी युद्ध में , उभय पक्ष वश मान!
मान मुगलिया सैन्य वर, मान प्रतापी शान!
मान प्रतापी शान, निभाई चेतक कीका!
कीका का सम्मान , मान का पड़ता फीका!
फीका हुआ गुलाल, लाल थी चन्दन माटी!
माटी विजयी गर्व, गुमानी हल्दीघाटी!
*कीका~महाराणा प्रताप*

. ३४ *भारत*
मेरा देश महान है, विविध बने मिल एक!
धर्म पंथ निरपेक्षता, संविधान जन नेक!
संविधान जन नेक, मूल अधिकार बतावे!
देश हितैषी कर्म , सभी कर्तव्य निभावे!
शर्मा बाबू लाल, स्वर्ण खग करे बसेरा!
गाते कृषक जवान, सुहाना भारत मेरा!

. ३५ *छाया*
छाया अम्बर की मिले , शैय्या धरती मात!
पवन सुनाये लोरियाँ, प्राकृत दे सौगात!
प्राकृत दे सौगात, करे तरु शीतल छाया!
छाया कुहरा शीत, मदन बासंती भाया!
शर्मा बाबू लाल , गीत छाया जो गाया!
छाया छायावाद, मनुज चाहे घर छाया!

. ३६ *निर्मल*
निर्मल तन मन वचन हो, जैसे गंगा नीर!
पवन निर्मला भूमि हो, सागर नद सर तीर!
सागर नद सर तीर, भाव भाषा मय कविता!
निर्मल शासन लोक, रोशनी चंदा सविता!
शर्मा बाबू लाल, खेत सर रहे न निर्जल!
सृष्टि धरा ब्रह्मांड, रहे जनमानस निर्मल!

•. ३७ *विनती*
विधना विपदा वारि वन, वायु वंश वारीश!
वृक्ष वटी वसुधा वचन, विनती वर वागीश!
विनती वर वागीस, वरुण वन वन्य विहारी!
वृहद विप्लवी विघ्न, विनय वंदन व्यवहारी!
वंदउँ विमल विकास, वाद विज्ञानी विजना!
वरदायी विश्वास, वरण वर विनती विधना!

. ३८. *भावुक*
भावे भजनी भावना, भोर भास भगवान!
भले भलाई भाग्य भल,भावुक भाव भवान!
भावुक भाव भवान, भजूँ भोले भण्डारी!
भरे भाव भिनसार, भाष भाषा भ्रमहारी!
भय भागे भयभीत, भ्रमित भँवरा भरमावे!
भगवन्ती भरतार, भगवती भोला भावे!

. ३९ *धरती*
सविता के परिवार में, ग्रह नक्षत्र अनेक!
प्राण पवन जल धारती, माता धरती एक!
माता धरती एक, उपग्रह चंदा भ्राता!
तारे करते छाँव, दिवाकर जीवन दाता!
शर्मा बाबू लाल, थके कवि कहते कविता!
धरती मात समान, धरा घूमें परि सविता!

. ४० *मानव*
मानव जीवन भाग्य से, वसुधा पर अनमोल!
दुर्लभ देवों को लगे, जीवन महत्व सतोल!
जीवन महत्व सतोल, कर्म कर पर उपकारी!
त्याग देह का नेह, देशहित जन हितकारी!
शर्मा बाबू लाल , बनो कर्तव्यी आनव!
मानवता के हेतु, मनुज बन जाओ मानव!

. ४१. *गागर*
गागर में सागर भरे, कविजन बड़े प्रवीण!
पढ़ पढ़ होता बावरा, मन मानस मति क्षीण!
मन मानस मति क्षीण, भाव में बहता जाए!
ऋषि अगस्त्य मानिंद, सिंधु रस पीना भाए!
शर्मा बाबू लाल, बिन्दु सम प्रियवर सागर!
मिट्टी पात्र समान , चाह मन भरलूँ गागर!

•. ४२. *सरिता*
सरिता ये धमनी शिरा, मान भारती शान!
गंगा यमुना नर्मदा, चम्बल सोन समान!
चम्बल सोन समान, सरित धरती सरसाती!
बने नहर बहु बन्ध, फसल धानी लहराती!
शर्मा बाबू लाल, सजी सँवरी सम बनिता!
चली सिंधु प्रिय पंथ, उमड़ती बहती सरिता!

•. ४३ *गहरा*
मानस मानुष प्रीत से, करे सृष्टि संचार!
सागर से गहरा वही, ढाई अक्षर प्यार!
ढाई अक्षर प्यार, युगों से बहे धरा पर!
थके लेखनी काव्य, लिखे कवि छंद बनाकर!
शर्मा बाबू लाल, मिले मन अय से पारस!
सच ही गहरा प्यार, निभाओ तन मन मानस!

. ४४ *आँगन*

तुलसी चौरा देहरी, आँगन चौक निवास!
राम ‘राम बोला’ तभी, वह नवजात सुभाष!
वह नवजात सुभाष, दंत द्वय मुख में धारे!
जन्म भुक्ति नक्षत्र, मात पितु सोच विचारे!
शर्मा बाबू लाल, अमर हो मरती हुलसी!
सूने आँगन तात, बाल मन भटके तुलसी!

•. ४५ *आधा*
आधा तन नर का हुआ, आधा नारी गात!
महादेव ने सृष्टि हित, उपजाए मनुजात!
उपजाए मनुजात, कहे मनु अरु शतरूपा!
करने कर्म अनूप, नही थे मद छल यूपा!
शर्मा बाबू लाल, सृष्टि हित टालें बाधा!
कर्म और अधिकार, बाँटकर आधा आधा!
*यूपा ~ द्यूत*

•. ४६ *यात्रा*

यात्रा करते जन बहुत, जाते देश विदेश!
धर्म ज्ञान हित भी करे, भ्रमण सभी परिवेश!
भ्रमण सभी परिवेश, शहर हो या देहाती!
दर्शन मंदिर धाम, आरती गाई जाती!
शर्मा बाबू लाल, देख नेपाल सुमात्रा!
भ्रमण मौज आनंद, सफल सबकी हो यात्रा!

•. ‌‌ ४७ *कोना*
कोना धरती का नहीं, फिर भी कहते लोग!
देश राज्य का भी कहे, कोना भाष कुयोग!
कोना भाष कुयोग, कोण को कहते ज्ञानी!
न्यून,अधिक समकोण,कहें गणितज्ञ विधानी!
शर्मा बाबू लाल, जरूरी शुभ यह होना!
भींत भींत समकोण, कक्ष भवनों में कोना!

. ४८ *मेला*
मेला मन के मेल का, रीति प्रीति का पंत!
सखी सहेली साथ में, मीत सनेही कंत!
मीत सनेही कंत, मिले मन की बतियाएँ!
खेलें खाएँ खूब, हँसे शिशु संग झुलाएँ!
शर्मा बाबू लाल, देख जन रेला ठेला!
परिजन पुरजन संग,चलें देखें सब मेला!
*पंत~पथ*
*कंत~पति*

•. ४९ *धागा*
उलझा धागा प्रेम का, रिश्ते लुटते स्वार्थ!
ताने बाने के सखे, बदल गये निहितार्थ!
बदल गये निहितार्थ, बना धागे से मंझा!
काटे पंख पतंग, लड़े उड़ मानस झंझा!
शर्मा बाबू लाल, नेह का धागा सुलझा!
जाति धर्म संस्कार, बंधनो में जो उलझा!

•. ५० *बिखरी*
बिखरी छटा पतंग की, कटी अधर में डोर!
कटी लुटी फिर फट गई,विधना लेख कठोर!
विधना लेख कठोर , वृद्धजन कटी पतंगे!
खप जीवन पर्यन्त, रहन अब रही उमंगे!
शर्मा बाबू लाल, जिंदगी जिनसे निखरी!
कटी पतंग बुजर्ग, उमंगे बिखरी बिखरी!
*रहन ~ गिरवी*

•. ५१. *गलती*
गलती हो यदि वैद्य से, दबे बात शमशान!
अधिवक्ता की न्याय में, भले बिगाड़े मान!
भले बिगाड़े मान, वणिक बस घाटा खाए!
यौवन बालक शिल्प , क्षम्य वह भी हो जाए!
शर्मा बाबू लाल, भूप की दीर्घ सुलगती!
शिक्षक कवि साहित्य, पड़े भारी भव गलती!

•. ५२ *बदला*
बदला लिया कलिंग ने, किया मगध का ह्रास!
दोनो तरफ विनाश बस, पढिए जन इतिहास!
पढ़िये जन इतिहास, सत्य जो सीख सिखाए!
भूत भावि संबंध, शोध नव पंथ दिखाए!
शर्मा बाबू लाल, करो मत मानस गँदला!
लेते देते हानि , सखे दुख दायक बदला!

•. ५३ *दुनिया*
दुनिया मतलब की हुई, स्वार्थ भरा संसार!
धर्म सनातन की सखे, बिकती सीख उधार!
बिकती सीख उधार, पंथ दादुर सम बोले!
पढ़ अंग्रेजी बोल, नये युग उड़े हिँडोले!
शर्मा बाबू लाल, भूलते गज वह गुनिया!
एकल अब परिवार, भीड़ में एकल दुनिया!

•. ५४ *तपती*
तपती असि धनु वीरता, मरुथल राजस्थान!
सहज पतंगाकार सम, किले महल पहचान!
किले महल पहचान, आन इतिहास बखाने!
आतुर युवा किशोर, देश हित शक्ति दिखाने!
शर्मा बाबू लाल, बाजरी सरसों पकती!
आन बान अरु शान, जवानी जन की तपती!

•. ५५ *मेरा*
मेरा मेरा सब करे, मैं का भाव कुभाव!
ममता माया मोह मैं, कारण द्वेष दुराव!
कारण द्वेष दुराव, अहं का भाव विनाशी!
हम का बोल उवाच, हमारे हों विश्वासी!
शर्मा बाबू लाल, समझ नित नया सवेरा!
मनुज हितैषी मान, त्याग भव तेरा मेरा!

•. ५६ *सबका*
सबका पानी आसमां, सिंधु सरित परिवेश!
पृथ्वी पवन प्रकाश पर, पलता प्रेम प्रदेश!
पलता प्रेम प्रदेश, देश हित जीवन अपना!
पर उपकारी भाव, भारती सेवा सपना!
शर्मा बाबू लाल, माल्य के हम सब मनका!
अपना भारत देश, तिरंगा अपना सबका!

•. ५७ *आगे*
आगे उड़े पतंग तो, पीछे रहती डोर!
कठपुतली सी नाचती, मन के वश दृग कोर!
मन के वश दृग कोर , रहे मन वश तृष्णा के!
इच्छा तृष्णा मोह, कृष्ण वश में कृष्णा के!
शर्मा बाबू लाल, बँधे सब प्रभु के धागे!
लगते सब असहाय, मनुज विधना के आगे!

•. ५८. *मौसम*
आते मौसम की तरह,सुख दुख जीवन संग!
गर्मी या बरसात हो, शीत कपाएँ अंग!
शीत कपाएँ अंग, पवन पुरवाई चलती!
कभी बसंत बयार, आश जन मन में पलती!
शर्मा बाबू लाल, विपद मिट हर्ष सुहाते!
बदले जीवन राग, रंग सम मौसम आते!

•. ५९. *जाना*
जाना तो तय हो गया, जब जन्मा इंसान।
दुर्लभ मानुष देह यह, रख अच्छे अरमान।
रख अच्छे अरमान, भारती से वर माँगो।
बुरे कर्म परिहार, द्वेष सब खूँटी टाँगो।
शर्मा बाबू लाल, गीत वीरों के गाना।
जन्म मिला जिस हेतु, काम पूरे कर जाना।

•. ६० *करना*
करना केवल कर्म नर,मत कर फल की आस।
भले कर्म होते फलित, मान ईश विस्वास।
मान ईश विश्वास, कर्म करना उपकारी।
देश धरा आकाश, पवन पानी हितकारी।
शर्मा बाबू लाल, तिरंगे हित ही मरना।
मृत्यु शास्वत सत्य, अमर भारत माँ करना।

•. ६१ *दीपक*
जलता पहले तो स्वयं, पीछे तिमिर पतंग।
देता दीपक रोशनी, घृत बाती के संग।
घृत बाती के संग, जले नित जन उपकारी।
करें प्राण उत्सर्ग, लोक हित बन तम हारी।
शर्मा बाबू लाल, स्वप्न नित नूतन पलता।
चाहे तम का अंत, नित्य ही दीपक जलता।

•. ६२ *पूजा*
करना पूजा ज्ञान की, मानस मान सुजान।
राष्ट्र गान से वन्दना, संसद वतन विधान।
संसद वतन विधान, पूज निज भारत माता।
सरिता सागर भानु, धरा शशि प्राकृत नाता।
शर्मा बाबू लाल, शीश चंदन रज धरना।
गुण मानवता सत्य, न्याय की पूजा करना।

•. ६३ *थाली*
थाली जिसमें खा रहे, करे उसी में छेद।
करे परिश्रम बावरे, वृथा बहाए स्वेद।
वृथा बहाए स्वेद, ताकते राम भरोसे।
घर की मुर्गी दाल, पराये भात परोसे।
शर्मा, बाबू लाल, चाल चलते मतवाली।
घी, बूरे की मौज, लगे औरों की थाली।

. ६४ *बाती*

बाती घी या तेल से, रखती मानस मेल।
पहले जलती है स्वयं, पीछे घृत या तेल।
पीछे घृत या तेल, निभाती प्रीत मिताई।
दूध नीर सा मेल, प्रीत की रीति दुहाई।
शर्मा, बाबू लाल, जले तब रात सुहाती।
रहे दीप का नाम, तेल घी जलती बाती।

•. ६५ *आशा*

चातक सी आशा रखो, मत तुम त्यागो धीर।
स्वाति बिंदु सम लक्ष्य भी, निश्चित मान प्रवीर।
निश्चित मान प्रवीर, पिपासा धारण करले।
करो परिश्रम कर्म, जोश तन मन में भरले।
शर्मा बाबू लाल, भूल मन नाम निराशा।
जाग्रत सपने देख, कर्म कर पूरित आशा।

•. ६६ *उड़ना*
उड़ना देख विहंग का, मन में रहा विचार।
मन ऊँचा इनसे उड़े, मनुज देह लाचार।
मनुज देह लाचार, चाह है नभ में जाना।
सूरज तारे चंद्र, पहुँच कर कविता गाना।
शर्मा बाबू लाल, नेह बल सबसे जुड़ना।
धरती पर हो पाँव, नयन मन ऊँचे उड़ना।

•. ६७ *खिलना*
खिलना चाहे हर कली, बनना सुंदर फूल।
तोड़ो मत उसको सखे, भ्रमर बनो अनुकूल।
भ्रमर बनो अनुकूल, सोच उद्धव सी रखना।
देना उत्तम ज्ञान, दर्द कुछ मन का चखना।
शर्मा बाबू लाल, चाह मन सबसे मिलना।
संपद विपद समान, फूल जैसे नित खिलना।

•. ६८ *होली*

होली होनी थी हुई, पर्व मने हर साल।
बेटी बनती होलिका, मरती मौत अकाल।
मरती मौत अकाल, कहे सब सुता बचाओ।
सच्चे कितने लोग, सत्यता जान बताओ।
शर्मा बाबू लाल, जले मत बेटी भोली।
खेल रंग संघर्ष, बचो बनने से होली।

•. ६९ *साजन*

साजन सीमा पर चले, तकती विरहा राह।
देश प्रथम अपने लिए, कहूँ न तन मन आह।
कहूँ न तन मन आह, यही बस मेरी चाहत।
पहले रखना देश, हमारा प्यारा भारत।
करो न मेरा मोह, बचे भारत का सावन।
विजित बने जब देश, तभी घर आना साजन।

•. ७० *सजना*
सजना है मुझको सखी, कर अनूप शृंगार।
अमर सुहागिन मै बनू, शत्रु दलन अंगार।
शत्रु दलन अंगार, देश हित मुझे सजाओ।
सीमा पर अरि घात , युद्ध के साज बजाओ।
शर्मा बाबू लाल, सजन मुश्किल मम बचना।
लक्ष्मी बाई याद, उन्हीं की जैसे सजना।

•. ७१ *डोरी*

डोरी रेशम सूत की, बनती रही सदैव।
जैसी जिसकी भावना, हो उपयोग तथैव।
हो उपयोग तथैव, प्रीत के बंध सुहावन।
बुनते फंदा जाल, करे कुछ काज अपावन।
शर्मा बाबू लाल, अन्न हित बनती बोरी।
भले भलाई बंध, नेह मय राखी डोरी।

•. ७२ *बोली*

बोली मीठी बोलना, कहते संत सुजान।
यही करे अंतर मनुज, कोयल कागा मान।
कोयल कागा मान, मनुज सच मीठा बोले।
झूठ बोल परिवेश, हलाहल मत तू घोले।
शर्मा बाबू लाल, दवा की बनकर गोली।
करती भव उपचार, घाव भी देती बोली।

•. ७३ *पाना*

पाना है निर्वाण मन, कर जीवन निर्वाह।
सत्य शुभ्र कर्तव्य कर, छोड़ व्यर्थ परवाह।
छोड़ व्यर्थ परवाह, सँभालें जो मिल पाया।
और और कर टेर, कर्म का मर्म गँवाया।
शर्मा बाबू लाल, रिक्त कर सबको जाना।
दैव दुर्लभम् देह, बचा अब क्या है पाना।

•. ७४ *खोना*

खोना मत जीवन वृथा, संगी सच्चे मीत।
माँ, भाषा भू भाग के, वतन गुमानी गीत।
वतन गुमानी गीत, प्राक इतिहासी महिमा।
आन बान अरु शान,हिन्द हिन्दी की गरिमा।
शर्मा बाबू लाल, दाग मन मानस धोना।
मान धरोहर देश, नहीं आजादी खोना।

•. ७५ *यादें*

यादें हैं इतिहास की, रखिये याद सुजान।
खट्टी मीठी बात सब, गौरव मान गुमान।
गौरव मान गुमान, उन्हे हम रखें सँभालें।
करलें गलती याद, बचें उनसे प्रण पालें।
शर्मा बाबू लाल, सोच फिर अटल इरादे।
करें देश हित कर्म, रहें अपनी भी यादें।

•. ७६ *छोटी*

छोटी सी गुड़िया मिली, जिसे जन्म सौगात।
भाग्यवान वह है पिता, धन्य धन्य वह मात।
धन्य धन्य वह मात, पालने शक्ति झुलाती।
सब परिवार प्रसन्न, सुने बोली तुतलाती।
शर्मा बाबू लाल, सुता सुन्दर नख – चोटी।
कुदरत का वरदान, सृष्टि धुर गुड़िया छोटी।

•. ७७ *मीठी*

मीठी बोली बोलिये, कोयल जैसे मित्र।
सत्य मान अपनत्व से, उत्तम बना चरित्र।
उत्तम बना चरित्र, भाव उपकारी मानव।
कर्कश बोले काग, कर्म भाषा ज्यों दानव।
शर्मा बाबू लाल, प्रेम रस पिस कर पीठी।
बने दाल पकवान, जिंदगी मानस मीठी।

•. ७८ *बातें*

बातें कहती ज्ञान की, दादी नानी मात।
किस्से और कहानियाँ, अनुपम मन सौगात।
अनुपम मन सौगात, याद वे अब भी आती।
भूली बिसरी बात, सहज इतिहास बताती।
शर्मा बाबू लाल, कठिन कटती जब रातें।
करलें बचपन याद, पुरातन युग की बातें।

•. ७९ *चमका*

चमका मेरा भाग्य जब, पाई कलम सुगंध!
करे हृदय कोटिश नमन, कहे ‘लाल’ यह बंध!
कहे ‘लाल’ यह बंध, शौक बस था कविताई!
लगे प्रेत सम छंद, मिले संजय सम भाई!
अनिता मंदिलवार, विदूषी पावन भभका!
सपन फलित विज्ञात,पटल का यश यूँ चमका!

•. ८० *गीता*

गीता अनुपम ग्रंथ है, कर्म ज्ञान प्रतिमान!
सार्थ करे जो पार्थ का, कहे कृष्ण भगवान!
कहे कृष्ण भगवान, महर्षि व्यास लिखाये!
अष्टादश अध्याय, सात सौ श्लोक समाये!
शर्मा बाबू लाल, समय को किसने जीता!
काल कर्म अधिकार, धर्म पथ दर्शी गीता!

•. ८१ *माना*
माना मानुष तन मिला, बल मन भाषा भाव!
मानवता हित कर्म में, रखिये मीत लगाव!
रखिये मीत लगाव, मान यह जीवन नश्वर!
प्राकृत ही बस सत्य, नियंत्रक हैं जगदीश्वर!
शर्मा बाबू लाल, गोल पृथ्वी यह जाना!
जहाँ मिला सद् ज्ञान, उसी को परखा माना!

•. ८२ *कहना*
कहना बस मेरा यही, सुन नव कवि प्रिय मीत!
शिल्प कथ्य भाषा सहित, रखें भाव सुपुनीत!
रखें भाव सुपुनीत, छंद लिखना कुण्डलियाँ!
सृजन धरोहर काव्य, उठे क्यों कभी अँगुलियाँ!
शर्मा बाबू लाल, समीक्षा निज हित सहना!
अनुपम लिखना छंद, प्रभावी बातें कहना!

•. ८३ *सहना*
सहना सुख का भी कठिन, उपजे मान घमंड!
गर्व किये सुख कब रहे, हो संतति उद्दण्ड!
हो संतति उद्दण्ड ,चैन सुख सारे खोते!
हो अशांत आक्रोश, बीज खुद दुख के बोते!
शर्मा बाबू लाल, मीत दुख संगत रहना!
कृपा ईश की मान, मिले जो दुख सुख सहना!

•. ८४ *वंदन*

वंदन करें किसान का, जय जय वीर जवान!
नमन श्रमिक मजदूर फिर, देश धरा विज्ञान!
देश धरा विज्ञान, लोक शिक्षक कवि सरिता!
सागर पर्वत पेड़, पिता माता की कमिता!
शर्मा बाबू लाल , पूज शिव – गौरी नंदन!
गाय गगन खग नीर, वात पावक का वंदन!

•. ८५ *आसन*
आसन को करते नमन, रही पुरातन रीत!
पाए जो आशीष वह, होता कब भयभीत!
होता कब भयभीत, पद्म आसन माँ शारद!
सुर नर मुनि जन ईश,असुर सज्जन ऋषि नारद!
कहे लाल कविराय, करें वंदन चतुरानन!
करलें जीवन धन्य, नमन गुरु शारद आसन!

•. ८६ *आतुर*
आतुर जल सरिता बहें, चाहत मिले नदीश!
देश हितैषी कर्म कर, मनुज मिलन जगदीश!
मनुज मिलन जगदीश, स्वर्ग के बने सितारे!
धरा रहे यश मान, गान बजने इकतारे!
शर्मा बाबू लाल , दीप से बन दीपांकुर!
चाहत मान शहीद, तिरंगा लिपटन आतुर!

•. ८७ *आभा*
आभा सविता की सतत, प्राकृत विविध प्रमाण!
जड़ चेतन सागर मनुज, जीव जन्तु तरु प्राण!
जीव जन्तु तरु प्राण, बसंती ऋतु बौराए!
भँवरे तितली कीट, गीत पिक विरह बढाए!
शर्मा बाबू लाल, डाल तरु सजते गाभा!
पछुआ सुखद बयार, बढ़े जन मन की आभा!
*गाभा ~ नव कलियाँ*

•. ८८ *चितवन*
चंचल चर चितवन चषक, चण्डी चुम्बक चाप!
चपला चूषक चप चिलम,चित्त चुभन चुपचाप!
चित्त चुभन चुपचाप, चाह चंडक चतुराई!
चमन चहकते चंद, चतुर्दिश चष चमचाई!
चाबुक चण्ड चरित्र, चाल चतुरानन चल चल!
चारु चमकमय चित्र, चुनें चॅम चंदन चंचल!
*चंडक~चंद्र,चॅम~मित्र, चष~दृश्य शक्ति, चप~चूने का घोल*

•. ८९ *मोहक*

मोहक मनमोहन मधुर, गिरिधर छवि गोपाल।
राधा ग्वालिन साथ में, सजे कन्हैया लाल।
सजे कन्हैया लाल, बाँसुरी मीठी बजती।
पियें हलाहल मौन, भाव मन मीरा भजती।
शर्मा बाबू लाल, कृष्ण की छवि के दोहक।
मोर मुकुट शृंगार, श्याम दृग सूरत मोहक।

•. ९० *शीतल*
शीतल मंद समीर जल, वन हो अभयारण्य।
चीता बाघ सियार कपि, देख मनुज मन धन्य।
देख मनुज मन धन्य, लोमड़ी भालू हाथी।
नीलकंठ पिक मोर,सहज खग मृग मय साथी।
विविध वृक्ष गउ नील, तेंदुए हिरनी चीतल।
मानव के हित मान, वन्य वन तरु जल शीतल।

•. ९१ *जीता*
जीता चेतक, प्राण तज, विजय प्रतापी आन।
विजित अकबरी सैन्य थी, हार गया वह मान।
हार गया वह मान, मुगलिया मद सत्ता का।
भूले क्यों गत युद्ध, खड़ग जय मल पत्ता का।
हल्दी घाटी “लाल”, मुगल कुल कब का रीता।
राणा वन्श महान, शान से अब भी जीता।

•. ९२ *हारा*
हारा जो हिम्मत नहीं, जीता उसने युद्ध।
त्याग तपस्या साथ ही, बने धैर्य से बुद्ध।
बने धैर्य से बुद्ध, तथागत जन दुखहारी।
किया प्राप्त बुद्धत्व,जीत कर भाव विकारी।
शर्मा बाबू लाल, हार मत, मिले किनारा।
पढ़ो विगत संघर्ष, धीर जन कभी न हारा।

•. ९३ *नारी*
नारी है सबला सदा, मानो सत्य सुजान।
जीवन दाता सृष्टि में, नारी अरु भगवान।
नारी अरु भगवान, सृष्टि भू इनसे चलती।
पले गर्भ नौ माह, पोषती पालन करती।
शर्मा बाबू लाल, तजें मन भाव विकारी।
करना इनका मान, नेह का सागर नारी।

•. ९४ *साहस*
साहस से मिलती विजय, बिन साहस तय हार।
गज को शेर पछाड़ दे, व्यर्थ सहे तन भार।
व्यर्थ सहे तन भार, बिना हिम्मत कब कीमत।
हिम्मत का यश मान, यही है सच्चा अभिमत।
शर्मा बाबू लाल, पड़े क्यों नर सम बाहस।
करो लोक हित कर्म, बुद्धि बल अपने साहस।
? *बाहस,वाहस~अजगर*

•. ९५ *नटखट*

नटखट नटवर कर पहल, डग मग पद धर संग।
रज कण कण गदगद नमन, पद पद सट कर अंग।
पद पद सट कर अंग, सतत चल चल भव नटवर।
यशुमति गदगद नंद, कलम तब जन मन कविवर।
कहत सहज कविसंत,लिखत बचपन यह झटपट।
उड़ पल पल मन भृंग, शरण तव गिरधर नटखट।

•. ९६ *अंकुश*
अंकुश से हाथी सधे, मनुज असुर वर देव।
सब जग भव भय स्वार्थवश,करे कर्म स्वयमेव।
करे कर्म स्वयमेव, श्राप वरदान विधानी।
गीता ग्रंथ अपार, लिखे जन काव्य कहानी।
शर्मा बाबू लाल, बने शिव शंकर भ्रंकुश।
भस्मासुर का अंत, सृष्टि जनहित में अंकुश।
? *भ्रंकुश:- स्त्री वेष में नाचने वाला पुरुष*

•. ९७ *चंदन*
चंदन तरुवर गंध से, परिचित सभी सुजान।
घिस घिस लगे ललाट पर, शीतल चंद्र समान।
शीतल चंद्र समान, पेड़ पर सर्प लिपटते।
महँगी बिकती काष्ठ, चोर इसलिए झपटते।
करे लाल कविराय, धाय पन्ना को वंदन।
निभा राज भू धर्म, कटाया निज सुत चंदन।

९८ *थोड़ा*

*थोड़ा दम भरता तुरग, करता नाला पार।*
*मनु बाई सम अश्व तव, होता यश संचार।*
*होता यश संचार, बची होती महा रानी।*
*होते तभी स्वतंत्र, बदलती कथा कहानी।*
*अड़ा न होता सोच, अमर तू होता घोड़ा।*
*कर चेतक को याद, अश्व भरता दम थोड़ा।*

९९ *पूरा*

पूरा होता ज्ञान कब, होता ज्ञान अनंत।
कौन हुआ सर्वग्य जन, अब तक धरा दिगंत।
अब तक धरा दिगंत, ज्ञान का छोर न पाया।
बढ़ता रहता नित्य, मनुज मस्तक की माया।
शर्मा बाबू लाल, अभी है ज्ञान अधूरा।
सतत करें कवि कर्म, ध्यान दें तन मन पूरा।

१०० *सपना*

सपना था यह सच हुआ, शतक वीर सम्मान।
कुण्डलिया लिख लिख हुए,कविजन सभी महान।
कविजन सभी महान, मिले गुरु सब पारंगत।
कुण्डलिया मन भाव, छंद शाला के संगत।
शर्मा बाबू लाल, समीक्षक बन कर तपना।
लिख शतकाधिक छंद,फलित हम सबका सपना।
•. •••••••••
रचनाकार
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
वरिष्ठ अध्यापक
V/p सिकंदरा,३०३३२६
जिला-दौसा, राजस्थान

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