chandani raat

आँख खुलने लगी / नीलम

आँख खुलने लगी/ नीलम

chandani raat

आँख खुलने लगी/ नीलम

रात के पिछले पहर में
शीत की ठंडी लहर में
कोहरे की चादर ओढ़े
सो रहे थे चाँद-तारे

धीरे -धीरे धरा सरकती
जा पहुँची प्राची के द्वारे
थरथराती ठंड से सिकुड़ती
थपथपा खुलवा रही थी द्वार

उषा ने धीमें से झांका झिरी से
फिर हौले से खोले द्वार
पहचान पृथा को थोड़ा सा
किया स्वागत उजास

फिर हौले से रवि की चादर
हल्के हल्के सरकाने लगी
किरणों के कर-पग धुलवाने लगी
आँखे मलते-मलते फिर
सूरज बाहर निकल पड़ा
चाँद-सितारों को भेज
धरती को ताप देने लगा

जरा जरा सी उष्मा पाकर
अंगड़ाई ले प्रकृति जागने लगी
हर तरफ सोई धरा की
*आँख खुलने* लगी

फैलने लगा प्रातः का उजियारा
नवजीवन का ले संदेश
नहीं स्थिर है सब की गति अशेष

रात जितनी भी अंधेरी
सर्द -जर्द से जकड़ी
पर उजाले की किरण
उसमें ही है छिपी कहीं

वैसे ही मन कितना ही सुप्त रहे
वक्त आने पर फिर उसकी भी आँख खुले।

        डा.नीलम.अजमेर

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